ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
काली घटाएं
आज फिजाओं से होकर
आई हैं काली-काली घटाएं
मिट्टी की सौंधी सुगन्ध लेकर
आई हैं फिर से आज हवाएं।
मेरे गांव की हरियाली को
और वहां की खुशहाली को
समेट कर बाहों में अपनी
लाई हैं फिर से आज हवाएं।
मिट्टी की सौंधी सुगन्ध लेकर
आई हैं फिर से आज हवाएं।
गांव की मेरी चंचल यादें
मां-बाप की वो फ रियादें
एकाएक जहन में मेरे
लाई हैं फिर से आज हवाएं।
मिट्टी की सौंधी सुगन्ध लेकर
आई हैं फिर से आज हवाएं।
मां की ममता पिता का प्यार
और उनका सारा दुलार
भरकर अपनी मुट्ठी में ये
लाई उडेलने आज ये हवाएं।
मिट्टी की सौंधी सुगन्ध लेकर
आई हैं फिर से आज हवाएं।
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