ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
प्रेमांकुर
पहली बार जब प्यार से
छुआ था तुमने मुझे,
वर्षों से सुप्त पड़े बीज में
सैंकड़ों अंकुर फूटने लगे।
वर्षों से सूखे इस बाग में
सबकुछ सूखा बिन पानी
तुम मेघ बनकर जो छाये
तो थोड़ी सी आश बंधी
पर लाकर बारिश इसमें
इसको सिंचित किया तुमने।
वर्षों से सुप्त पड़े बीज में
सैंकड़ों अंकुर फूटने लगे।
अब बारिश हुई है तो
फुलूंगी, गदराऊंगी मैं
एक दिन भरा-पूरा पेड़ बन
मीठा फल दे जाऊंगी मैं
आगे की आश बांधी तुमने।
हैं प्रियतम स्वीकार मुझे।
वर्षों से सुप्त पड़े बीज में
सैंकड़ों अंकुर फूटने लगे।
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