ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 26 पाठक हैं |
आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
जीवन की डोर
जिन्दगी नीरस हो चली है
आशाएं धूमिल होने लगी हैं
मगर फिर भी ना जाने क्यों
डोर जीवन की बंधी हुई है।
साहित्य की क्या खोज करूं
खुद जीवन मेरा खोया है
मैं क्या कोई कविता लिखूं
खुद अन्तर्मन मेरा रोया है ,
सोचता हूं तभी आज मैं
क्यों अश्रुधारा बह चली है।
मगर फिर भी ना जाने क्यों
डोर जीवन की बंधी हुई है।
आंखों में अश्रु हाथ में कलम
लिखना क्या है मुझको ये
कुछ भी ज्ञात नहीं है सनम
तभी तो बार-बार जहन में
उठता है सवाल जिन्दगी का
दिमाग से यादें मिट चली हैं।
मगर फिर भी ना जाने क्यों
डोर जीवन की बंधी हुई है।
0 0 0
|