ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
|
26 पाठक हैं |
आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
शीतल पवन
ऊष्ण होकर बह पवन
क्यों ठंड संग लाती है,
ठंड के मारे हाल बुरा है
कंपकंपी बंध जाती है।
यहां जंगल बियाबान में
हूं तुम पर ही मैं आश्रित
तुम ही यदि दोगी धोखा
हो जाऊंगा मैं स्वयं अधीर
आकर बंधाओं मेरी धीर
क्यों मुझे आज रूलाती है।
ठंड के मारे हाल बुरा है
कंपकंपी बंध जाती है।
0 0 0
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book