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स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9604
आईएसबीएन :9781613015834

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स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।


रक्तदाता तुझे सलाम


प्रिय बेटे
जब तुम गर्भ में थे
मैने कतरा-कतरा खून से
तुम्हारा सर्जन किया,
क्योंकि मैं तुम्हारी मां हूं।

जब तुमने आँखें खोली
मैंने अपनी भूख मारकर
आंते निचोड़कर
तुम्हें दूध पिलाया
क्योंकि मैं तुम्हारी मां हूं।

बचपन में
तुम्हारे गीले बिस्तर को
अपने शरीर की
गर्मी से सुखाया
तुम्हें अपने सीने पर सुलाया
क्योंकि मैं तुम्हारी मां हूं।

प्रत्येक मां के समान
मेरा एक सपना
स्वार्थ इच्छा
कि आज मैं उंगली पकड़कर
चलना सिखाती हूं।
कल तुम उंगली पकड़कर
मुझे सहारा दोगे,
क्योंकि मैं तुम्हारी मां हूं।

तब मैं
तनिक भी पीड़ित नहीं हुई
जब मैंने सुना
तुम रणभूमि में घायल हुए
और कराहे-'हे मां.. ..!'
मैं वहां नहीं थी।

किसी किसी देव पुरुष के रक्त ने
तुम्हारी जान बचायी।
उस अनजान रक्तदाता का
न कोई लालच, न कोई सपना
मानवता व स्वान्त: सुखाय!
अब तुम्हारी धमनियों में
मेरे खून के साथ-साथ
उसका रक्त प्रवाहित हो रहा है।

वह रक्तदाता मुझसे महान है
भगवान के बाद, मां का नहीं
अब रक्तदाता का नाम है
एक मां को भी
कर्जदार कर दिया उसने
उस महामानव रक्तदाता का
मुझ पर बड़ा उपकार है
क्योंकि मैं तुम्हारी मां हूं।

पर मुझे असह्य पीड़ा
उस क्षण की है।

जब तुमने मचल कर
कॉलेज में
रक्तदान करने का प्रस्ताव रखा।
मैंने दृढता से प्रस्ताव ठुकरा दिया
तुमको कॉलेज नहीं जाने दिया
मैं स्वार्थ में अंधी हो गयी
क्योंकि मैं तुम्हारी मां हूं।

बेटे अब मैं समझ गयी
रक्तदान, गुप्तदान, महादान।

मुझे वचन दो,
रक्तदान करोगे कराओगे
तभी कर्ज से उऋण हो पाओगे।
और मैं गर्व से कह पाऊंगी कि
मैं तुम्हारी मां हूं।

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