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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603
आईएसबीएन :9781613012581

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


इसी समय माणिक मुल्ला से मैंने पूछा कि आखिर इस परिस्थिति से कभी आपका मन नहीं ऊबता था? वे बोले (शब्द मेरे हैं, तात्पर्य उनका) कि - ऊबता क्यों नहीं था? अक्सर मैं ऊब जाता था तो कुछ ऐसे-ऐसे करतब करता था कि मैं भी चौंक उठता था और दूसरे भी चौंक उठते थे। जिनसे मैं अक्सर अपने को ही विश्वास दिलाया करता था कि मैं जीवित हूँ, क्रियाशील हूँ। जैसे - कह कुछ और रहा हूँ, कहते-कहते कर कुछ और गया। इसे संकीर्ण मनवाले लोग झूठ बोलना या धोखा देना भी कह सकते हैं। पर यह सब केवल दूसरों को चौंकाना मात्र था, अपनी घबराहट से ऊब कर। तीखी बातें करना, हर मान्यता को उखाड़ फेंकने की कोशिश करना, यह सब मेरे मन की उस प्रवृत्ति से प्रेरित थीं जो मेरे अंदर की जड़ता और खोखलेपन का परिणाम थीं।'

लेकिन जब हम लोगों ने पूछा कि इसमें आखिर उन्हें संतोष क्या मिलता था तो वे बोले, 'मैं महसूस करता था कि मैं अन्य लोगों से कुछ अलग हूँ, मेरा व्यक्तित्व अनोखा है, अद्वितीय है और समाज मुझे समझ नहीं सकता। साधारण लोग अत्यंत साधारण हैं, मेरी प्रतिभा के स्तर से बहुत नीचे हैं, मैं उन्हें जिस तरह चाहूँ बहका सकता हूँ। मुझमें अपने व्यक्तित्व के प्रति एक अनावश्यक मोह, उसकी विकृतियों को भी प्रतिभा का तेज समझने का भ्रम और अपनी असामाजिकता को भी अपनी ईमानदारी समझने का अनावश्यक दंभ आ गया था। धीरे-धीरे मैं अपने ही को इतना प्यार करने लगा कि मेरे मन के चारों ओर ऊँची-ऊँची दीवालें खड़ी हो गईं और मैं स्वयं अपने अहंकार में बंदी हो गया, पर इसका नशा मुझ पर इतना तीखा था कि मैं कभी अपनी असली स्थिति पहचान नहीं पाया।'

'तो आप इस मन:स्थिति से कैसे मुक्त हुए?'

'वास्तव में एक दिन बड़ी विचित्र परिस्थिति में यह रहस्य मुझ पर खुला कि सत्ती जीवित है और अब उसके मन में मेरे लिए प्रेम के स्थान पर गहरी घृणा है। इसका पता लगते ही मैंने सत्ती की मृत्यु को ले कर जो व्यर्थ का ताना-बाना अपने व्यक्तित्व के चारों ओर बुन रखा था वह छिन्न-भिन्न हो गया और मैं फिर एक स्वस्थ साधारण व्यक्ति की तरह हो गया।' उसके बाद उन्होंने वह घटना बताई :

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