ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
अगर काफी फुरसत हो, पूरा घर अपने अधिकार में हो, चार मित्र बैठे हों, तो निश्चित है कि घूम-फिर कर वार्ता राजनीति पर आ टिकेगी और जब राजनीति में दिलचस्पी खत्म होने लगेगी तो गोष्ठी की वार्ता 'प्रेम' पर आ टिकेगी। कम-से-कम मध्यवर्ग में तो इन दो विषयों के अलावा तीसरा विषय नहीं होता। माणिक मुल्ला का दखल जितना राजनीति में था उतना ही प्रेम में था, लेकिन जहाँ तक साहित्यिक वार्ता का प्रश्न था वे प्रेम को तरजीह दिया करते थे।
प्रेम के विषय में बात करते समय वे कभी-कभी कहावतों को अजब रूप में पेश किया करते थे और उनमें से न जाने क्यों एक कहावत अभी तक मेरे दिमाग में चस्पाँ है, हालाँकि उसका सही मतलब न मैं तब समझा था न अब! अक्सर प्रेम के विषय में अपने कड़वे-मीठे अनुभवों से हम लोगों का ज्ञानवर्धन करने के बाद खरबूजा काटते हुए कहते थे, 'प्यारे बंधुओ! कहावत में चाहे जो कुछ हो, प्रेम में खरबूजा चाहे चाकू पर गिरे चाहे चाकू खरबूजे पर, नुकसान हमेशा चाकू का होता है। अत: जिसका व्यक्तित्व चाकू की तरह तेज और पैना हो, उसे हर हालत में उस उलझन से बचना चाहिए।' ऐसी अन्य कहावतें थीं जो याद आने पर बाद में लिखूँगा।
लेकिन जहाँ तक कहानियों का प्रश्न था, उनकी निश्चित धारणा थी कि कहानियों की तमाम नस्लों में प्रेम कहानियाँ ही सबसे सफल साबित होती हैं, अत: कहानियों में रोमांस का अंश जरूर होना चाहिए। लेकिन साथ ही हमें अपनी दृष्टि संकुचित नहीं कर लेनी चाहिए और कुछ ऐसा चमत्कार करना चाहिए कि वे समाज के लिए कल्याणकारी अवश्य हों।
जब हम लोग पूछते थे कि यह कैसे संभव है कि कहानियाँ प्रेम पर लिखी जाएँ पर उनका प्रभाव कल्याणकारी हो, तब वे कहते थे कि यही तो चमत्कार है तुम्हारे माणिक मुल्ला में जो अन्य किसी कहानीकार में है ही नहीं।
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