ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
कभी-कभी वे सोचते थे कि अपनी भावनाओं को पत्र के माध्यम से लिख डालें और वे कभी-कभी पत्र लिखते भी थे बहुत लंबे-लंबे और बहुत मधुर, यहाँ तक कि अगर वे बचे होते तो उनकी गणना नेपोलियन और सीजर के प्रेम-पत्रों के साथ की जाती, मगर जब उसमें 'आत्मा की ज्योति' - 'चाँद की राजकुमारी' आदि वे लिख चुकते तो उन्हें खयाल आता कि यह भाषा तो बेचारी सत्ती समझती नहीं, और जो भाषा उसकी समझ में आती थी उसका व्यवहार करने पर कमर में लटकनेवाले काले चाकू की तसवीर दिमाग में आ जाती थी। अत: उन्होंने वे सब खत फाड़ डाले।
उसी बीच में सत्ती की ममता माणिक के प्रति दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती गई और जब-जब माणिक मुल्ला कहीं जाते, बाहर बैठा हुआ चमन ठाकुर अपना कटा हाथ हिला कर इन्हें सलाम करता, हँसता और पीठ पीछे इन्हें बहुत खूनी निगाह से देख कर दाँत पीसता और पैर पटक कर हुक्के के अंगारे कुरेदता। सत्ती माणिक के खाने-पीने, कपड़े-लत्ते, रहन-सहन में बहुत दिलचस्पी लेती और बाद में अपनी अड़ोसिन-पड़ोसिन से बतलाती कि माणिक बारहवें दरजे में पढ़ रहे हैं और इसके बाद बड़े लाट के दफ्तर में इन्हें नौकरी मिल जाएगी और हमेशा माणिक को याद दिलाती रहती थी कि पढ़ने में ढिलाई मत करना।
पर एक बात अक्सर माणिक देखते थे कि सत्ती अब कुछ उदास-सी रहने लगी है और कोई ऐसी बात है जो यह माणिक से छिपाती है। माणिक ने बहुत पूछा पर उसने नहीं बताया। पर वह अक्सर चमन ठाकुर को झिड़क देती थी, राह में उसकी चिलम पड़ी रहती थी तो उसे ठोकर मार देती थी, खुद कभी हिसाब न करके उसके सामने कापी और वसूली के रुपए फेंक देती थी। चमन ठाकुर ने एक दिन माणिक से कहा कि मैं अगर इसे न ला कर पालता-पोसता तो इसे चील और गिद्ध नोच-नोच कर खा गए होते और यही जब माणिक ने सत्ती से कहा तो वह बोली, 'चील और गिद्ध खा गए होते तो वह अच्छा होता बजाय इसके कि यह राक्षस उसे नोचे खाए!' माणिक ने सशंकित हो कर पूछा तो वह बहुत झल्ला कर बोली, 'यह मेरा चाचा बनता है। इसीलिए पाल-पोस कर बड़ा किया था। इसकी निगाह में खोट आ गया है। पर मैं डरती नहीं। यह चाकू मेरे पास हमेशा रहता है।' और उसके बाद उन्होंने सत्ती को पहली बार रोते देखा और वह अनाथ, मेहनती और निराश्रित लड़की फूट-फूट कर रोई और उन्हें कई घटनाएँ बतायीं। यह बात सुन कर माणिक मुल्ला को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ पर वे बहुत व्यथित हुए और यह जान कर कि ऐसा भी हो सकता है उनके मन पर बहुत धक्का लगा। उस दिन शाम को उनसे खाना नहीं खाया गया और यह सोच कर उनकी आँख में आँसू भी आ गए कि यह जिंदगी इतनी गंदी और विकृत क्यों है।
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