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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603
आईएसबीएन :9781613012581

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


प्रकाश : यही तो माणिक मुल्ला की खूबी है। अगर जरा-सा सचेत हो कर उनकी बात तुम समझते नहीं गए तो फौरन तुम्हारे हाथ से तत्व निकल जाएगा, हलका-फुलका भूसा हाथ आएगा। अब यह बताओ कि कहानी सुन कर क्या भावना उठी तुम्हारे मन में? तुम बताओ!

मैं : (यह समझ कर कि ऐसे अवसर पर थोड़ी आलोचना करना विद्वत्ता का परिचायक है) भई, मेरे तो यही समझ में नहीं आया कि माणिक मुल्ला ने जमुना-जैसी नायिका की कहानी क्यों कही? शकुंतला-जैसी भोली-भाली या राधा-जैसी पवित्र नायिका उठाते, या बड़े आधुनिक बनते हैं तो सुनीता-जैसी साहसी नायिका उठाते या देवसेना, शेखर की शशी-वशी तमाम टाइप मिल सकते थे।

प्रकाश : (सुकरात की-सी टोन में) लेकिन यह बताओ कि जिंदगी में अधिकांश नायिकाएँ जमुना-जैसी मिलती हैं या राधा और सुधा और गेसू और सुनीता और देवसेना-जैसी?

मैं : (चालाकी से अपने को बचाते हुए) पता नहीं! मेरा नायिकाओं के बारे में कोई अनुभव नहीं। यह तो आप ही बता सकते हैं।

श्याम : भाई, हमारे चारों ओर दुर्भाग्य से नब्बे प्रतिशत लोग तो जमुना और रामधन की तरह के होते हैं, पर इससे क्या! कहानीकार को शिवम का चित्रण करना चाहिए।

प्रकाश : यह तो ठीक है। पर अगर किसी जमी हुई झील पर आधा इंच बरफ और नीचे अथाह पानी और वहीं एक गाइड खड़ा है जो उस पर से आनेवालों को आधा इंच की तो सूचना दे देता है और नीचे के अथाह पानी की खबर नहीं देता तो वह राहगीरों को धोखा देता है या नहीं?

मैं : क्यों नहीं?

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