ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
पहली दोपहर
नमक की अदायगी
अर्थात जमुना का नमक माणिक ने कैसे अदा किया
उन्होंने सबसे पहली कहानी एक दिन गरमी की दोपहर में सुनाई थी जब हम लोग लू के डर से कमरा चारों ओर से बंद करके, सिर के नीचे भीगी तौलिया रखे चुपचाप लेटे थे। प्रकाश और ओंकार ताश के पत्ते बाँट रहे थे और मैं अपनी आदत के मुताबिक कोई किताब पढ़ने की कोशिश कर रहा था। माणिक ने मेरी किताब छीन कर फेंक दी और बुजुर्गाना लहजे में कहा, 'यह लड़का बिलकुल निकम्मा निकलेगा। मेरे कमरे में बैठ कर दूसरों की कहानियाँ पढ़ता है। छि:, बोल कितनी कहानियाँ सुनेगा।' सभी उठ बैठे और माणिक मुल्ला से कहानी सुनाने का आग्रह करने लगे। अंत में माणिक मुल्ला ने एक कहानी सुनाई जिसमें उनके कथनानुसार उन्होंने इसका विश्लेषण किया था कि प्रेम नामक भावना कोई रहस्यमय, आध्यात्मिक या सर्वथा वैयक्तिक भावना न हो कर वास्तव में एक सर्वथा मानवीय सामाजिक भावना है, अत: समाज-व्यवस्था से अनुशासित होती है और उसकी नींव आर्थिक-संगठन और वर्ग-संबंध पर स्थापित है।
नियमानुसार पहले उन्होंने कहानी का शीर्षक बताया : 'नमक की अदायगी'। इस शीर्षक पर उपन्यास-सम्राट प्रेमचंद के 'नमक का दारोगा' का काफी प्रभाव मालूम पड़ता था पर कथावस्तु सर्वथा मौलिक थी। कहानी इस प्रकार थी -
माणिक मुल्ला के घर के बगल में एक पुरानी कोठी थी जिसके पीछे छोटा अहाता था। अहाते में एक गाय रहती थी, कोठी में एक लड़की। लड़की का नाम जमुना था, गाय का नाम मालूम नहीं। गाय बूढ़ी थी, रंग लाल था, सींग नुकीले थे। लड़की की उम्र पंद्रह साल की थी, रंग गेहुँआ था (बढ़िया पंजाबी गेहूँ) और स्वभाव मीठा, हँसमुख और मस्त। माणिक, जिनकी उम्र सिर्फ दस बरस की थी, उसे जमुनियाँ कह कर भागा करते थे और वह बड़ी होने के नाते जब कभी माणिक को पकड़ पाती थी तो इनके दोनों कान उमेठती और मौके-बेमौके चुटकी काट कर इनका सारा बदन लाल कर देती। माणिक मुल्ला निस्तार की कोई राह न पा कर चीखते थे, माफी माँगते थे और भाग जाते थे।
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