ई-पुस्तकें >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित सूक्तियाँ एवं सुभाषितस्वामी विवेकानन्द
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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
91. जब कोई प्रतिभा या विशेष शक्तिवाला व्यक्ति जन्म लेता है, तो मानो उसके आनुवंशिक सर्वोत्तम गुण और सब से क्रियाशील विशेषताएँ उसके व्यक्तित्व के निर्माण में पूरी तरह निचुड़कर स्तर-रूप में आती हैं। इसी कारण हम देखते हैं कि उसी वंश में बाद में जन्म लेनेवाले या तो मूर्ख होते हैं या साधारण योग्यतावाले, और कई उदाहरण ऐसे भी हैं कि कभी कभी ऐसे वंश पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।
92. यदि इस जीवन में मोक्ष नहीं मिल सकता, तो क्या आधार है कि तुम्हें वह अगले एक या अनेक जन्मो में मिलेगा ही?
93. आगरे का ताज देखकर स्वामीजी ने कहा ''यदि यहाँ के संगमर्मर के एक टुकड़े को निचोड़ सको, तो उसमें राजसी प्रेम और पीड़ा के बूँद टपकेंगे।'' और भी उन्होंने कहा, ''इसके अन्दर के सौन्दर्य के शिल्प का एक वर्ग इंच समझने के लिए सचमुच में छह महीने लगते हैं।''
94. जब भारत का सच्चा इतिहास लिखा जायेगा, यह सिद्ध होगा कि धर्म के विषय में और ललितकलाओं मे भारत सारे विश्व का प्रथम गुरु है।
95. स्थापत्य के बारे में उन्होंने कहा ''लोग कहते हैं कि कलकत्ता महलों का नगर है, परन्तु यहाँ के मकान ऐसे लगते हैं, जैसे एक सन्दूक के ऊपर दूसरा रखा गया हो। इनसे कोई कल्पना नहीं जागती। राजपूताना में अभी भी बहुत कुछ मिल सकता है, जो शुद्ध हिन्दू स्थापत्य है। यदि एक धर्मशाला को देखो, तो लगेगा कि वह खुली बाहों से तुम्हे अपनी शरण में लेने के लिए पुकार रही है और कह रही है कि मेरे निर्विशेष आतिथ्य का अंश ग्रहण करो। किसी मन्दिर को देखो, तो उसमें और उसके आसपास दैवी वातावरण निश्चय मिलेगा। किसी देहाती कुटी को भी देखो, तो उसके विविध हिस्सों का विशेष अर्थ तुम्हारी समझ में आ सकेगा, और उसके स्वामी के आदर्श और प्रमुख स्वभाव-गुणों का साक्ष्य उस पूरी बनावट से मिलेगा। इटली को छोड़कर मैंने कही भी ऐसा अभिव्यंजक स्थापत्य नही देखा।''
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