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सरल राजयोग
सरल राजयोग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :73
मुखपृष्ठ :
Ebook
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पुस्तक क्रमांक : 9599
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आईएसबीएन :9781613013090 |
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
नारदजी तब दूसरे व्यक्ति के पास गये। उसने भी पूछा, ''क्या आपने मेरी बात भगबान् से पूछी थी?''
नारदजी बोले, ''हाँ, भगवान् ने कहा है, उसके सामने जो इमली का पेड़ है, उसके जितने पत्ते हैं, उतनी बार उसको जन्म ग्रहण करना पड़ेगा।''
यह बात सुनकर वह व्यक्ति आनन्द से नृत्य करने लगा और बोला, ''मैं इतने कम समय में मुक्ति प्राप्त करूँगा!'' तब दैववाणी हुई - ''वत्स, तुम इसी क्षण मुक्ति प्राप्त करोगे।''
वह दूसरा व्यक्ति इतना अध्यवसायसम्पन्न था! इसलिये उसे वह पुरस्कार मिला। वह इतने जन्म साधना करने के लिए तैयार था। कुछ भी उसे उद्योगशून्य न कर सका। परन्तु वह प्रथमोक्त व्यक्ति चार जन्मों की ही बात सुनकर घबड़ा गया। जो व्यक्ति मुक्ति के लिए सैकड़ों युग तक बाट जोहने को तैयार था, उसके समान अध्यवसायसम्पन्न होने पर ही उच्चतम फल प्राप्त होता है।
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