लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पवहारी बाबा

पवहारी बाबा

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9594
आईएसबीएन :9781613013076

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

249 पाठक हैं

यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।

अमृत की खोज में


जिस व्यक्ति का शब्दचित्र हम यहाँ दे रहे हैं, वे अद्भुत विनयसम्पन्न तथा गम्भीर आत्मज्ञानी थे।

पवहारी बाबा (मृत्यु के बाद वे इसी नाम से विख्यात हुए) का जन्म बनारस जिले में गुजी*  नामक स्थान के निकट एक गाँव में किसी ब्राह्मण वंश में हुआ। बाल्यावस्था में ही वे अपने चाचा के पास रहने तथा विद्यार्जन करने के लिए गाजीपुर आ गये थे। (* एक ऐसा भी मत है कि पवहारी बाबा का जन्म जौनपुर जिले में प्रेमापुर नामक ग्राम में सन १८४० ई. में हुआ था।)

वर्तमान काल में हिन्दू साधु प्रधानत: निम्नलिखित सम्प्रदायों में विभक्त हैं - संन्यासी, योगी, वैरागी तथा पन्थी। संन्यासी श्रीशंकराचार्य के मतावलम्बी अद्वैतवादी हैं। योगी यद्यपि अद्वैतवादी होते हैं, पर योग की भिन्न-भिन्न प्रणालियों की साधना करने के कारण उनकी एक अलग श्रेणी मानी गयी है। वैरागी रामानुजाचार्य तथा अन्यान्य द्वैतवादी आचार्यों के अनुयायी होते हैं। पन्थियों में द्वैती तथा अद्वैती दोनों का समावेश होता है। इनके सम्प्रदायों की स्थापना मुसलमानों के शासनकाल में हुई थी।

पवहारी बाबा के चाचा रामानुज अथवा श्रीसम्प्रदाय के अनुयायी थे; वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे अर्थात् उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। गाजीपुर से उत्तर में दो मील की दूरी पर गंगा के किनारे उनकी छोटीसी जमीन थी और वहीं वे बस गये थे। उनके कई भतीजे थे। उनमें से वे एक (पवहारी बाबा ) को अपने घर में ले गये और गोद ले लिया, जिससे वह उनकी सम्पत्ति तथा पद का उत्तराधिकारी हो।

पवहारी बाबा की इस समय की जीवनघटनाओं के सम्बन्ध में हमें कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है और न हमें इसी बात का कुछ पता है कि जिन विशेष गुणों के कारण वे भविष्य में इतने विख्यात हुए थे, उनका उस समय उनमें कोई चिह्न भी विद्यमान था। लोगों को इतना ही स्मरण है कि उन्होंने व्याकरण, न्याय तथा अपने सम्प्रदाय के धर्मग्रन्थों का बड़े परिश्रम के साथ विशेष रूप से अध्ययन किया था। साथ ही वे फुर्तीले एवं विनोदप्रिय भी थे। कभी-कभी उनकी विनोदप्रियता की मात्रा इतनी बढ़ जाती थी कि उनके सहपाठियों को उनकी शरारतों से परेशान होना पड़ता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book