ई-पुस्तकें >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँस्वामी रामसुखदास
|
5 पाठकों को प्रिय 1 पाठक हैं |
नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।
कीड़े से महर्षि मैत्रेय
भगवान् व्यास सभी जीवोंकी गति तथा भाषाको समझते थे। एक बार जब वे कहीं जा रहे थे तब रास्तेमें उन्होंने एक कीड़ेको बड़े वेगसे भागते हुए देखा। उन्होंने कृपा करके कीड़ेकी बोलीमें ही उससे इस प्रकार भागनेका कारण पूछा। कीड़ेने कहा-'विश्ववन्द्य मुनीश्वर! कोई बहुत बड़ी बैलगाड़ी इधर ही आ रही है। कहीं यह आकर मुझे कुचल न डाले, इसलिये मैं तेजीसे भागा जा रहा हूँ।'
इसपर व्यासदेवने कहा-'तुम तो तिर्यग्योनिमे पड़े हुए हो, अतः तुम्हारे लिये तो मर जाना ही सौभाग्य है। मनुष्य यदि मृत्युसे डरे तो उचित है, पर तुम कीटको इस शरीरके छूटनेका इतना भय क्यों है?'
इसपर कीड़ेने कहा-'महर्षे! मुझे मृत्युसे किसी प्रकारका भय नहीं है। भय इस बातका है कि इस कुत्सित कीटयोनिसे भी अधम दूसरी लाखों योनियाँ हैं, मैं कहीं मरकर उन योनियोंमें न चला जाऊँ। उनमें गर्भ आदि धारण करनेके क्लेशसे मुझे डर लगता है, दूसरे किसी कारणसे मैं भयभीत नहीं हूँ।'
व्यासजीने कहा-'कीट! तुम भय मत करो। मैं जबतक तुम्हें ब्राह्मण-शरीरमे न पहुँचा दूँगा, तबतक सभी योनियोंसे शीघ्र ही छुटकारा दिलाता रहूँगा।'
व्यासजीके यों कहनेपर वह कीड़ा पुनः मार्गमें लौट आया और रथके पहियेसे दबकर उसने प्राण त्याग दिये। तत्पश्चात् वह कौए और सियार आदि योनियोंमें जब-जब उत्पन्न हुआ, तब-तब व्यासजीने जाकर उसके पूर्वजन्मका स्मरण करा दिया। इस तरह वह क्रमशः साही, गोधा, मृग, पक्षी, चाण्डाल, शूद्र और वैश्यकी योनियोंमें जन्म लेता हुआ क्षत्रिय-जातिमे उत्पन्न हुआ। उसमें भी भगवान् व्यासने उसे दर्शन दिया। वहाँ वह प्रजापालनरूप धर्मका आचरण करते हुए थोड़े ही दिनोंमें रणभूमिमें शरीर त्यागकर ब्राह्मणयोनिमे उत्पन्न हुआ। जब वह पाँच वर्षका हुआ, तभी व्यासदेवने जाकर उसके कानमें सारस्वत-मन्त्रका उपदेश कर दिया। उसके प्रभावसे बिना पड़े ही उसे सम्पूर्ण वेद, शास्त्र और धर्मका स्मरण हो आया। पुनः भगवान् व्यासदेवने उसे आज्ञा दी कि वह कार्तिकेयके क्षेत्रमें जाकर नन्दभद्रको आश्वासन दे। नन्दभद्रको यह शंका थी कि पापी मनुष्य भी सुखी क्यों देखे जाते हैं। इसी क्लेशसे घबराकर वे बहूदक तीर्थमें तप कर रहे थे।
|