ई-पुस्तकें >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँस्वामी रामसुखदास
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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।
आप दोनोंके सेवाकार्य उत्तरोत्तर बढ़ते गये। झाड़ू-बुहारू, लीपना-पोतना आदि कार्य करके शेष समय दीनों इतिहास-पुराणके श्रवणमें बिताने लगे। एक दिन आपकी पत्नीने अपने पिताकी दी हुई अँगूठी वस्त्रके साथ कथा-वाचकको दे दी। इस तरह सूर्यकी सेवासे आप दोनोंके पाप जल गये। सेवामें दोनोंको रस मिलने लगा था, अतः दिन-रातका भान ही नहीं होता था।
एक दिन महाराज कुवलाश्व उस मन्दिरमें आये। उनके साथ बहुत बड़ी सेना भी थी। राजाके उस ऐश्वर्यको देखकर आपमें राजा बननेकी इच्छा जाग उठी। यह जानकर भगवान् सूर्यने उससे भी बड़ा वैभव देकर आपकी इच्छाकी पूर्ति कर दी है। यह तो आपके वैभव प्राप्त करनेका कारण हुआ। अब आपमें जो इतना तेज है और आपकी पत्नीमें जो इतनी कान्ति आ गयी है, इनका रहस्य सुनें। एक बार सूर्य-मन्दिरका दीपक तैल न रहनेसे बुझ गया। तब आपने अपने भोजनके लिये रखे हुए तैलमेंसे दीपकमें तैल डाला और आपकी पत्नीने अपनी साड़ी फाड़कर बत्ती लगा दी थी। इसीसे आपमें इतना तेज और आपकी पत्नीमें इतनी कान्ति आ गयी है।
आपने उस जन्ममें जीवनकी संध्यावेलामें तन्मयताके साथ सूर्यकी आराधना की थी। उसका फल जब इतना महान् है तब जो मनुष्य दिन-रात भक्ति-भावसे दत्तचित्त होकर जीवनपर्यन्त सूर्यकी उपासना करता है, उसके विशाल फलको कौन आंक सकता है?
महाराज सत्राजित्ने पूछा-'भगवान् सूर्यको क्या-क्या प्रिय है? मैं चाहता हूँ कि उनके प्रिय फूलों और पदार्थोंका उपयोग करूँ।' परावसुने कहा-'भगवान् को मृतका दीप बहुत पसंद है। इतिहास-पुराणोंके वाचककी जो पूजा की जाती है, उसे भगवान् सूर्यकी ही पूजा समझो। वेद और वीणाकी ध्वनि भगवान् को उतना पसंद नहीं है, जितनी 'कथा'। फूलोंमें करवीर (कनेर)-का फूल और चन्दनोंमें रक्त चन्दन भगवान् सूर्यको बहुत प्रिय है।'
(भविष्यपुराण)
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