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पौराणिक कथाएँ

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9593
आईएसबीएन :9781613015810

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नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।

भगवती देवसेनाका ध्यान, पूजन और स्तोत्र इस प्रकार है-जो प्रसंग सामवेदकी कौथुमी शाखामें वर्णित है। शालग्रामकी प्रतिमा, कलश अथवा वटके मूलभागमें या दीवालपर पुत्तलिका बनाकर प्रकृतिके छठे अंशसे प्रकट होनेवाली शुद्धस्वरूपिणी इन भगवतीकी पूजा करनी चाहिये। विद्वान् पुरुष इनका इस प्रकार ध्यान करे-'सुन्दर पुत्र, कल्याण तथा दया प्रदान करनेवाली ये देवी जगत्की माता हैं। श्वेत चम्पकके समान इनका वर्ण है। ये रत्नमय भूषणोंसे अलंकृत हैं। इन परम पवित्र-स्वरूपिणी भगवती देवसेनाकी मैं उपासना करता हूँ।' विद्वान् पुरुष इस प्रकार ध्यान करनेके पश्चात् भगवतीको पुष्पाज्ञलि समर्पण करे। पुन: ध्यान करके मूलमन्त्रसे इन साध्वी देवीकी पूजा करनेका विधान है। पाद्य, अर्घ्न, आचमनीय, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, विविध प्रकारके नैवेद्य तथा सुन्दर फलद्वारा भगवतीकी पूजा करनी चाहिये। उपचार अर्पण करनेके पूर्व 'ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा'-इस मन्त्रका उच्चारण करना विहित है। पूजक पुरुषको चाहिये कि यथाशक्ति इस अष्टाक्षर महामन्त्रका जप भी करे।

तदनन्तर मनको शान्त करके भक्तिपूर्वक स्तुति करनेके पश्चात् देवीको प्रणाम करे। जो पुरुष देवीके उपर्युक्त अष्टाक्षर महामन्त्रका एक लाख जप करता है, उसे अवश्य ही उत्तम पुत्रकी प्राप्ति होती है, ऐसा ब्रह्माजीने कहा है। सम्पूर्ण शुभ कामनाओंको प्रदान करनेवाला, सबका मनोरथ पूर्ण करनेवाला निम्न स्तोत्र वेदोंमें गोप्य है-

'देवीको नमस्कार है। महादेवीको नमस्कार है। भगवती सिद्धि एवं शान्तिको नमस्कार है। शुभा, देवसेना एवं भगवती षष्ठीको बार-बार नमस्कार है। वरदा, पुत्रदा, धनदा, सुखदा एवं मोक्षप्रदा भगवती षष्ठीको बार-बार नमस्कार है। मूल-प्रकृतिके छठे अंशसे प्रकट होनेवाली भगवती सिद्धाको नमस्कार है। माया, सिद्धयोगिनी, सारा, शारदा और परादेवी नामसे शोभा पानेवाली भगवती षष्ठीको बार-बार नमस्कार है। बालकोंकी अधिष्ठात्री, कल्याण प्रदान करनेवाली, कल्याणस्वरूपिणी एवं कर्मोंके फल प्रदान करनेवाली देवी षष्ठीको बार-बार नमस्कार है। अपने भक्तोंको प्रत्यक्ष दर्शन देनेवाली तथा सबके लिये सम्पूर्ण कार्योमें पूजा प्राप्त करनेकी अधिकारिणी स्वामी कार्तिकेयकी प्राणप्रिया देवी षष्ठीको बार-बार नमस्कार है। मनुष्य जिनकी सदा वन्दना करते हैं तथा देवताओंकी रक्षामें जो तत्पर रहती हैं, उन शुद्ध सत्त्वस्वरूपा देवी षष्ठीको बार- बार नमस्कार है। हिंसा और क्रोधसे रहित भगवती षष्ठीको बार-बार नमस्कार है। सुरेश्वरि! तुम मुझे धन दो, प्रिय पत्नी दो और पुत्र देनेकी कृपा करो। महेश्वरि! तुम मुझे सम्मान दो, विजय दो और मेरे शत्रुओंका संहार कर डालो। धन और यश प्रदान करनेवाली भगवती षष्ठीको बार-बार नमस्कार है। सुपूजिते! तुम भूमि दो, प्रजा दो, विद्या दो तथा कल्याण एवं जय प्रदान करो। तुम षष्ठीदेवीको मेरा बार-बार नमस्कार है।'

इस प्रकार स्तुति करनेके पश्चात् महाराज प्रियव्रतने षष्ठीदेवीके प्रभावसे यशस्वी पुत्र प्राप्त कर लिया। जो पुरुष भगवती षष्ठीके इस स्तोत्रको एक वर्षतक श्रवण करता है, वह यदि अपुत्री हो तो दीर्घजीवी सुन्दर पुत्र प्राप्त कर लेता है। जो एक वर्षतक भक्तिपूर्वक देवीकी पूजा करके इनका यह स्तोत्र सुनता है, उसके सम्पूर्ण पाप विलीन हो जाते हैं। महान् बच्चा भी इसके प्रसादसे संतान प्रसव करनेकी योग्यता प्राप्त कर लेती है। वह भगवती देवसेनाकी कृपासे गुणी, विद्वानम यशस्वी, दीर्घायु एवं श्रेष्ठ पुत्रकी जननी होती है। काकवन्ध्या अथवा मृतवत्सा नारी एक वर्षतक इसका श्रवण करनेके फलस्वरूप भगवती षष्ठीके प्रभावसे पुत्रवती हो जाती है। यदि बालकको रोग हो जाय तो उसके माता-पिता एक मासतक इस स्तोत्रका श्रवण करें तो षष्ठीदेवीकी कृपासे उस बालककी व्याधि शान्त हो जाती है।

(ब्रह्मवैवर्तपुराण)


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