लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘हमारी सम्मति मानो। अपने छूटने का मूल्य दे दो और चल दो।’’

इसके उपरान्त बन्दियों को पुनः बन्दी-गृह से डाल दिया गया। यह बात भूमण्डल में विख्यात हो गयी कि लंकाधिपाति को विन्ध्य प्रदेश के राजा अर्जुन ने बन्दी बना रखा है। यह सूचना विश्रवा-आश्रम में भी पहुँची। कैकसी को जब यह पता चला कि रावण बन्दी बना लिया गया है तो वह अपने पति के पास पहुँची और उसे कहने लगी कि उसके पुत्र को छुड़ाना चाहिये।

‘‘मैं क्या कर सकता हूँ?’’

कैकसी जानती थी कि राजा अर्जुन मुनिजी का शिष्य रह चुका है और कभी-कभी गुरुजी से उपदेश लेने आश्रम में आया करता है। इस कारण कैकसी ने पति से कहा, ‘‘भगवन्! राजा अर्जुन आपका शिष्य है अतः आप अपने पुत्र की सिफारिश करेंगे तो वह छोड़ दिया जायेगा।’’

इस पर मुनि ने कहा, ‘‘मैं विचार करता हूँ कि मैं तुम्हारे पुत्र की सिफारिश किस कारण करूँ?’’

‘‘तो क्या पुत्र होना पर्याप्त कारण नहीं कि आप उसके जीवन की रक्षा करें?’’

‘‘जीवन तो उसका बना है। मुझे विश्वास है कि अर्जुन उसकी हत्या नहीं करेगा और खाने-पीने को भी मिलेगा।’’

‘‘परन्तु भगवन्! यदि उसे वहाँ बन्दी-गृह में सुख-सुविधा रहेगी तो फिर उसे बन्दी बनाया ही किसलिये गया है?’’

‘‘इस कारण कि वह किसी अन्य को हानि न पहुँचा सके।’’

‘‘नहीं भगवन्! आप उससे वचन ले लीजिये कि वह राजा अर्जुन का कहा मानेगा। अर्थात् दोनों में संधि करवा दीजिये।’’

कैकसी ने पति को विवश कर दिया कि वह रावण को छोड़ देने का अपने शिष्य को आदेश दे।

विश्रवा स्वयं विन्ध्य प्रदेश में गया और उसके कहने पर राजा ने धन की माँग वापस ले ली और पुनः आक्रमण न करने का वचन ले रावण इत्यादि को मुक्त कर दिया गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book