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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


मारीच द्वारपाल को इस प्रकार डरा-धमका कर अपने सेना-शिविर में लौट आया।

मारीच अभी शिविर पर पहुँच कर रावण को राजा के रानियों से जल-विहार की कथा को सुन ही रहे थे कि नर्मदा का जल चढ़ने लगा। देखते ही देखते, जहाँ वे लोग ठहरे हुए थे, वह स्थान पानी से घिर गया। रावण नदी में सामान्य बाढ़ आयी समझ किसी ऊँचे स्थान को ढूँढने लगा।

रावण और उसके सब साथी देख रहे थे कि नर्मदा का जल बहने से रुक गया है। मानो, कहीं बाँध लगा दिया गया हो और चारों ओर जल-थल हो गया था। आधी घड़ी में ही यह हो गया और जल इतना अधिक हो गया कि वे तैरने लगे। उनके पाँव भूमि से नहीं लगते थे। विमान में जल भर गया और वह उड़ने के योग्य नहीं रहा।

रावण की सेना तो डूबने लगी थी। वह भयभीत जिधर जिसको समझ आया, भाग खड़ी हुई। सैनिक अपनी-अपनी जान बचाने के लिये समीप की पहाड़ियों की ओर तैर कर जाने लगे थे। रावण और मारीच भी तैरते हुए जान बचाने की चिन्ता में थे कि नौकाओं में राजा अर्जुन मे सुभट्ट आये और रावण तथा मारीच को बन्दी बनाकर राजप्रासाद में ले गये।

राजप्रासाद और महिष्मति पुरी एक पहाड़ी पर स्थित था। नगरी के लोग नगर के बाहर आ राक्षसों के तैर-तैर कर जान बचाने का दृश्य देख रहे थे। जो कोई भी राक्षस तट पर पहुँच पाता था, उसे पकड़ कर बन्दी बना लिया जाता था।

रावण और मारीच को बन्दी बना कर राजप्रासाद में लाया गया तो वही द्वारपाल जिसे मारीच सन्देश देकर गया था, अपने स्थान द्वार पर खड़ा मिला। उसने मारीच को झुककर प्रणाम किया और गम्भीर भाव से खड़ा रहा।

मारीच लज्जा से गरदन झुकाये समीप से निकल गया। रावण उसके आगे-आगे था। दोनों को एक ही आगार में बन्दी बना रखा गया।

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