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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

द्वितीय परिच्छेद

1

रम्भा से बलात्कार का समाचार पूर्ण देवलोक मे फैल गया। कुबेर ब्रह्मलोक के ब्रह्मा के पास पहुँचा और रम्भा का पूर्ण वृत्तान्त बता कर कहने लगा, ‘‘इसका प्रतिकार होना चाहिये।’’

ब्रह्मा ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘धनाध्यक्ष! तुम लंका छोड़ किस लिये चले आये थे?’’

‘‘पिताजी कहते थे कि राज्य जैसी तुच्छ वस्तु के लिये भाई-भाई में युद्ध ठीक नहीं होगा।’’

‘‘और अब एक अप्सरा के लिये तुम देवलोक में आग लगाना चाहते हो?’’

‘‘परन्तु भगवन्! यह विषय अब देवलोक के नियमोपनियम का हो गया है। देवलोक में स्त्रियों पर बलात्कार नहीं होता।’’

‘‘और स्त्रियाँ पुरुषों पर बलात्कार कर सकती हैं?’’

‘‘भगवन्! यह स्त्रियों को अधिकार देवातओं ने ही दिया हुआ हैं।’’

देवता इस घटना पर लंकाधिपति से युद्ध नहीं करेंगे। इस पर भी मैं चाहता हूँ कि देवताओं को अपने भविष्य पर विचार करना चाहिये। एक देव-सभा बुलायी जाये और उसमें वर्त्तमान देवलोक की स्थिति पर विचार किया जाये।’’

‘‘तो महाराज! आप हमारे पुरोहित हैं। आप बुलाइये।’’

‘‘ठीक है। मैं देव-सभा इन्द्र के प्रासाद में बुलाऊँगा। तुम भी आना। अपने साथ हुए अन्याय का वर्णन करना।’’

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