उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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‘‘दीदी! क्या समझी हो?’’
‘किस विषय में पूछ रही हो?’’
‘‘अमृतलालजी के विषय में।’’
‘‘निश्चय से तो कुछ कह नहीं सकती। इस पर मुझे पहले भी सन्देह था और अब भी वह सन्देह विश्वास में बदल जाता है कि तुम्हारे जीजाजी मरे नहीं अभी जीवित हैं।’’
‘‘मुझे भी यही समझ में आया है। तो अब क्या किया जाये?’’
‘‘किस लिए क्या किया जाये?’’
‘‘जीजाजी के विषय में निश्चय से जानना चाहिये। जब यह बात निश्चय हो जाये कि वह पायलट महाशय जीजाजी ही हैं तो फिर विचार कर निश्चय किया जाये कि उनके प्रति अपना क्या व्यवहार हो? उनके माता-पिता को सूचना भेजी जाये अथवा नहीं?’’
‘‘मैं समझती हूँ?’’ महिमा ने कहा, ‘‘कि हमें कुछ नहीं करना चाहिये। उनकी अवहेलना करनी चाहिये। यदि वह यह पता पा जायें कि मैं दिल्ली में हूँ तो उनसे मेल-मुलाकात से इन्कार कर दूँ।’’
‘‘पर दीदी! यदि वह जीजाजी हैं तो मेरे विषय में तो उनको पता चल गया होगा कि बलवन्त के पिताजी की मैं पत्नी हूँ। पिताजी की दों ही लड़कियाँ है। अतः उसके स्क्वाड्रन लीडर की पत्नी गरिमा ही हो सकती है। यह तो प्रकट ही हो गया होगा।’’
‘‘तो तुम्हें भय है कि जीजाजी को तुम्हारा उससे सम्बन्ध का पता न लग जाये।’’
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