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उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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रात आठ बजे कुलवन्त ने अपने विंग-कमाण्डर लैफ्टिनेण्ट बोपत को टेलीफोन किया और टेलीफोन लग जाने के लिये उसका धन्यवाद कर दिया।
रात कुलवन्त बाबा की कथा में अधिक रुचि लेने लगा था। जो बात विश्रवा मुनि ने कही थी, उसकी परीक्षा हो गयी। कैकसी अपने चतुर्थ गर्भ काल में रोहिणी की कुटिया में रही थी। वहाँ के सात्त्विक वातावरण और बातचीत का प्रभाव नवजात पर हुआ था। वह शरीर से कुछ दुबल था, परन्तु उसकी बुद्धि दशग्रीव से सर्वथा विलक्षण थी।
विभीषण वाल्यकाल से ही सौम्य स्वभाव और ईश्वर-भक्त था। वह अपने पिता से शिक्षा पाता हुआ द्रुत-गति से शास्त्र का ज्ञाता होने लगा। दशग्रीव और कुम्भकर्ण पिता की शास्त्र-शिक्षा से अधिक खेल-कूद और मल्ल-युद्ध में रुचि लेते थे। कैकसी की लड़की तो दिन-दिन-भर वनों में घूमती रहती थी।
इस सब दिनों सुमाली अपनी लड़की से मिलता रहता था। परन्तु वह कभी ऋषि के सम्मुख नहीं आया था।
दशग्रीव अठ्ठारह वर्ष की वयस का हुआ तो एक दिन सुमाली एकान्त मे कैकसी से मिलकर कहने लगा, ‘‘देखो कैकसी! अब समय आ गया है कि तुम उस योजना को आगे चलाओ, जिसके लिये मैंने तुम्हें यहाँ भेजा था।’’
‘‘मैं क्या करूँ, बाबा?’’
‘‘अपने पुत्रों को ब्रह्मलोक में तपस्या करने के लिये भेज दो। वहाँ युद्ध-विद्या सिखाने का एक विशेष विद्यालय है। वहाँ इनको भेज दो।’’
‘‘परन्तु सुना है कि वहाँ देवताओं के अतिरिक्त अन्य किसी को प्रवेश नहीं मिलता।’’
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