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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘तब इन्द्र ने इन दोनों को देवलोक से निकाल विन्ध्याचल क्षेत्र में मलद और करुष नगरों में रहने को भेज दिया। यहाँ पहुँच इन्होंने इन दोनों जनपदों को उजाड़ दिया है और अब उस वन में माँ-पुत्र दोनों का राज्य है। नगर विध्वंस हो चुके हैं। उनके स्थान पर घने जंगल हो गये हैं।

‘‘अब सुना है कि वहाँ किसी विश्वामित्र मुनि ने एक सिद्धाश्रम नाम का अपना निवास-स्थान बनाया है? ये माँ-पुत्र विचार कर रहे हैं कि उस आश्रम के सब रहने वालों को मार कर खा जायें।

‘‘मारीच की सम्मति है कि ऐसी ही नीति पूर्ण विन्ध्याचल पर चलायी जाये। उनका विचार है कि पाँच-दस वर्ष में वह पूर्ण क्षेत्र जनशून्य हो जायेगा तब हमारे सैनिक वहाँ राक्षस राज्य स्थापित कर लेंगे।’’

‘‘परन्तु पिताजी! मार्ग में पम्पासुर पड़ता है। वह भी एक समृद्ध वन राज्य है। उसके बने रहते हम विन्ध्य प्रदेश में राज्य स्थापित नहीं कर सकेंगे।’’

‘‘उसके विषय में भी एक योजना बनायी है। वह मैं चुपचाप सम्पन्न कर लूँगा। उस राज्य का राजा बाली अति शौर्यवान है। उसकी आँखों में इतना तेज है कि जिसकी ओर वह देखता है, उसका बल क्षीण हो जाता है।

‘‘मैं अकेला जाकर छल से उसे बन्दी बना लाऊँगा। एक बार वह बन्दी हुआ तो पूर्ण राज्य हमारे अधीन हो जायेगा।’’

इस योजना पर कार्य होने लगा। दो राक्षस सेनापति खर और दूषण नर्मदा के तट पर दण्डकारण्य में भेज दिये गए और उन्होंने वहाँ एक विस्तृत जनपद बसाना आरम्भ कर दिया।

एक दिन रावण वेश बदल कर पम्पासुर क्षेत्र के सागर तट पर घूम रहा था। वह देखना चाहता था कि बाली वहाँ अपने राज्य को सुदृढ़ करने के लिये क्या योजना बना रहा है।

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