लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592
आईएसबीएन :9781613011072

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘ठीक है। उससे आपको युद्ध नहीं करना चाहिये। परन्तु आप ऐसे दिव्यास्त्र तो राम के पास पहुँचा ही सकते हैं जो राम जैसे युवक प्रयोग कर सकें।’’

‘‘ठीक है। मैं विचार करूँगा। दण्डक वन में एक शरभंग ऋषि का आश्रम है। एक समय यह शरभंग सुमाली इत्यादि से पीड़ित महादेव के पास पहुँचा था। तदनन्तर वहाँ से सहायता न पा वह धौम्य मुनि की सहायता से विष्णु के पास गया था।

‘‘माल्यवान इत्यादि राक्षसों के लंका से भगा देने के उपरान्त वह दण्डक वन मे रहता हुआ तपस्या कर रहा है। उसे मैं अपने शस्त्रास्त्र दे सकूँगा। वह इस योग्य है कि उनके चलाने का ढंग सीख और सिखा सके।’’

‘‘तो ऐसा करिये कि आप शरभंग ऋषि से सम्पर्क बनाइये और मैं विश्वामित्रजी से बातचीत करता हूँ।’’

नारद विश्वामित्र के पास मलद और कुरुष नगरों के उजड़ जाने पर बने वन में जा पहुँचा। विश्वामित्र यज्ञ कर रहा था। उसके कुछ शिष्य भी उसके यज्ञ में सम्मिलित हो रहे थे।

नारद को विश्वामित्र पहचानता था। अतः उसे आया देख विश्वामित्र यज्ञ-वेदी से उठा और देवर्षि के चरण-स्पर्श कर उन्हें आदर-युक्त आसन पर बैठाकर हाथ जोड़ पूछने लगा, ‘‘भगवन्! कैसे आना हुआ है?’’

‘‘आपसे एक कार्य है। मैंने सुना है कि आप इस भयंकर वन में वैठे यज्ञ कर रहे हैं और यहाँ पर राक्षसों ने विघ्न और बाधायें डालनी आरम्भ कर दी हैं।’’

‘‘हाँ, भगवन्! वे नित्य यज्ञ को भ्रष्ट कर जाते हैं। वे मुझे और मेरे शिष्यों को तो हानि पहुँचा नहीं सकते। मैं अपनी रक्षा के लिये अपने शस्त्रास्त्र प्रयोग कर लेता हूँ। परन्तु यज्ञ पर बैठे हुआ मैं किसी की हत्या नहीं कर सकता।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book