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नया भारत गढ़ो

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9591
आईएसबीएन :9781613013052

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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।


जिनके रुधिर-स्राव से मनुष्यजाति की यह जो कुछ उन्नति हुई है, उनके गुणों का गान कौन करता है?

लोकजयी धर्मवीर, रणवीर, काव्यवीर, सब की आँखों पर, सब के पूज्य हैं; परंतु जहाँ कोई नहीं देखता, जहाँ कोई एक वाह वाह भी नहीं करता, जहाँ सब लोग घृणा करते हैं, वहाँ वास करती है अपार सहिष्णुता, अनन्य प्रीति और निर्भिक कार्यकारिता; हमारे गरीब, घर-द्वार पर दिनरात मुँह बंद करके कर्तव्य करते जा रहे हैं, उसमें क्या वीरत्व नही हैं?

ये जो किसान, मजदूर, मोची, मेहतर आदि हैं इनकी कर्मशीलता और आत्मनिष्ठा तुममें से कइयों से कहीं अधिक हैं। ये लोग चिरकाल से चुपचाप काम करते जा रहे हैं, देश का धन-धान्य उत्पन्न कर रहे हैं, पर आपने मुँह से शिकायत नहीं करते। माना कि उन्होंने तुम लोगों की तरह पुस्तके नहीं पढ़ी हैं, तुम्हारी तरह कोट-कमीज पहनकर सभ्य बनना उन्होंने नहीं सीखा, पर इससे क्या होता है? वास्तव में वे ही राष्ट्र की रीढ हैं।

यदि ये निम्न श्रेणियों के लोग अपना अपना काम करना बंद कर दें तो तुम लोगों को अन्न-वस्त्र मिलना कठिन हो जाय। कलकत्ते में यदि मेहतर लोग एक दिन के लिए काम बंद कर देते हैं तो 'हाय तोबा' मच जाती है। यदि तीन दिन वे काम बंद कर दें तो संक्रामक रोगों से शहर बरबाद हो जाय। श्रमिकों के काम बंद करने पर तुम्हें अन्न-वस्त्र नहीं मिल सकता। इन्हें ही तुम लोग नीच समझ रहे हो और अपने को शिक्षित मानकर अभिमान कर रहे हो!

इन लोगों ने सहस्त्र-सहस्त्र वर्षों तक नीरव अत्याचार सहन किया है, - उससे पायी है अपूर्व सहिष्णुता। सनातन दुःख उठाया, जिससे पायी है अटल जीवनीशक्ति। ये लोग मुट्ठीभर सत्तू खाकर दुनिया उलट दे सकेंगे।

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