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नया भारत गढ़ो

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9591
आईएसबीएन :9781613013052

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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।


हमें फौजी सामर्थ्य चाहिए परंतु, वह अपनी स्वाधीनता की सुरक्षा के लिए -- न कि फौजी अपने पड़ोसियों को लूटने के लिए। उसी प्रकार हमें धन चाहिए अपने गरीब बांधवों का पेट भरने के लिए-- किंतु धनोपार्जन हमारे राष्ट्र का आदर्श कभी नहीं बन सकता। इन दोनों बातों के अतिरिक्त हमें और एक विशेष बात की आवश्यकता है -- वह है शांती। भला वह कौनसी वस्तु है जो हमें शक्ति और समृद्धि के साथ ही शांति भी दे सकेगी?

अपने प्राचीन इतिहास का अध्ययन कर हमें देखना चाहिए कि अशोक, चंद्रगुप्त, कनिष्क आदि राजाओं के शासनकाल में शक्ति-सामर्थ्य, समृद्धि तथा सुख--सभी बातों में भारत कितना उन्नत था। यह स्पष्ट ही है कि वैदिक तथा बौद्ध युग में हमारे सम्मुख जो महान् आदर्श थे वही हमारे अतीत के गौरव के लिए कारणीभूत हैं। आज हमारी अवनती कैसे हुई, हमारा पतन क्यों हुआ, इसका कारण हमें ढूँढ निकालना चाहिए। अतएव भावी भारत का गठन करते समय हमें, जिन आदर्शों ने हमें उन्नत एवं महान् बनाया उनका स्वीकार करना चाहिए तथा जिन बातों के कारण हमारी अवनति हुई उनका त्याग करना चाहिए। साथ ही, हमें कुछ ऐसे नये विषयों का भी ग्रहण करना चाहिए, जो उस युग में उपलब्ध नहीं थे। उदाहरणार्थ--साइन्स और टेक्नोलॉजी।

आजकल हम विज्ञान की खूब दुहाई देते हैं। हम कहा करते हैं--यह बात विज्ञानसंगत नहीं है, यह गलतफहमी है, आदि। किंतु अपने अतीत काल की ओर बिलकुल ध्यान न दे, उसमें क्या अच्छा था या उसमें कौनसी विशेषता थी जिसके कारण हमारा राष्ट्र गत तीन हजार वर्ष तक गौरवपूर्वक टिका रहा यह समझने का बिलकुल प्रयत्न न करते हुए हम उन पाश्चात्य आदर्शों के पीछे दौड़ते हैं जो ज्यादा से ज्यादा दो सौ वर्ष पहले अस्तित्व में आये और जो आज तक युग की कसौटी में खरे नहीं उतरे। क्या इस प्रवृत्ति को वैज्ञानिक कहा जा सकता है? क्या पाश्चात्य राष्ट्रों की समस्याओं को सुलझाने में वे आदर्श कभी समर्थ हुए हैं? क्या उन आदर्शों के कारण उन राष्ट्रों को कभी सुख-शांती मिली है? ऐसा तो नहीं दिखाई देता। फिर हम इन आदर्शों के पीछे क्यों दौड़ें?

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