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नया भारत गढ़ो

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9591
आईएसबीएन :9781613013052

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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।


भारत के अधःपतन का कारण क्या था? जातिसंबंधी इस भाव का त्याग। जैसे गीता कहती है - जाति नष्ट हुई कि संसार भी नष्ट हुआ।

... आजकल का वर्ण-विभाग यथार्थ में जाति नहीं है, बल्कि जाति की प्रगति में वह एक रुकावट ही है। वास्तव में इसने सच्ची जाति अथवा विविधता की स्वच्छंद गति को रोक दिया है। ... प्रत्येक हिंदू जानता है कि किसी लड़के या लड़की के जन्म लेते ही ज्योतिषी लोग उसके जाति- निर्वाचन की चेष्टा करते हैं। वही असली जाति है हर एक व्यक्ति का व्यक्तित्व, और ज्योतिष इसे स्वीकार करता है। और हम लोग केवल तभी उठ सकते हैं जब इसे फिर से पूरी स्वतंत्रता दें। याद रखें कि इस विविधता का अर्थ वैषम्य नहीं है, और न कोई विशेषाधिकार ही। प्रत्येक दृढ़मूल अभिजात वर्ग अथवा विशेष अधिकारप्राप्त संप्रदाय जाति का घातक है - वह जाति नहीं है। 'जाति' को स्वतंत्रता दो, जाति की राह से प्रत्येक रोड़े को हटा दो, बस, हमारा उत्थान होगा।

जो लोग कहते हैं कि अशिक्षित या गरीब मनुष्यों को स्वाधीनता देने से अर्थात् उनको अपने शरीर और धन आदि पर पूरा अधिकार देने, तथा उनके वंशजों को धनी और ऊँचे दर्जे के आदमियों के वंशजों की भांति ज्ञान प्राप्त करने एवं अपनी दशा सुधारने में समान सुविधा देने से वे उन्मार्गगामी बन जायेंगे, तो क्या वे समाज की भलाई के लिए ऐसा कहते हैं अथवा स्वार्थ से अंधे होकर?

पुरोहित-प्रपंच ही भारत की अधोगति का मूल कारण है। मनुष्य अपने भाई को पतित बनाकर क्या स्वयं पतित होने से बच सकता है? ... क्या कोई व्यक्ति स्वयं का किसी प्रकार अनिष्ट किये बिना दूसरों को हानि पहुँचा सकता है? ब्राह्मण और क्षत्रियों के ये ही अत्याचार चक्रवृद्धि ब्याज के सहित अब स्वयं के सिर पर पतित हुए हैं, एवं यह हजारों वर्ष की पराधीनता और अवनति निश्चय ही उन्हीं के कर्मों के अनिवार्य फल का भोग है। जिन्होंने गरीबों का रक्त चूसा, जिनकी शिक्षा उनके धन से हुई, जिनकी शक्ति उनकी दरिद्रता पर बनी, वे अपनी बारी में सैकड़ों और हजारों की गिनती में दास बनाकर बेचे गये, उनकी संपत्ति हजार वर्षों तक लुटती रही, और उनकी स्त्रियाँ और कन्याएँ अपमानित की गयीं। क्या आप समझते हैं कि यह अकारण ही हुआ?

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