ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको मेरे गीत समर्पित उसकोकमलेश द्विवेदी
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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे
41. हम हो जायें गंगासागर
तेरे भीतर एक नदी है मेरे भीतर एक समंदर।
फिर भी जाने क्यों मैं प्यासा रह जाता हूँ तुझसे मिलकर।।
मैं जितना खारा था पहले
उतना ही हूँ अब भी खारा।
लेकिन जाने कहाँ खो गया
तेरा वो मीठापन सारा।
मुझको लगता इसीलिए मैं प्यासा रह जाता हूँ अक्सर।
तेरे भीतर एक नदी है मेरे भीतर एक समंदर।।
मुझमें अब भी उठतीं लहरें
यह मिलने की व्याकुलता है।
पर क्या तू भी इतना व्याकुल
इसका भेद नहीं खुलता है।
काश, कभी तू मिलने आये मन के सारे भेद भुलाकर।
तेरे भीतर एक नदी है मेरे भीतर एक समंदर।।
पहली बार मिला था जब मैं
तू मुझको कितना भाया था।
गंगा जैसा पावन-पावन
तेरा रूप नज़र आया था।
फिर मिल जाये वो पावनता हम हो जायें 'गंगासागर'।
तेरे भीतर एक नदी है मेरे भीतर एक समंदर।।
फिर भी जाने क्यों मैं प्यासा रह जाता हूँ तुझसे मिलकर।।
मैं जितना खारा था पहले
उतना ही हूँ अब भी खारा।
लेकिन जाने कहाँ खो गया
तेरा वो मीठापन सारा।
मुझको लगता इसीलिए मैं प्यासा रह जाता हूँ अक्सर।
तेरे भीतर एक नदी है मेरे भीतर एक समंदर।।
मुझमें अब भी उठतीं लहरें
यह मिलने की व्याकुलता है।
पर क्या तू भी इतना व्याकुल
इसका भेद नहीं खुलता है।
काश, कभी तू मिलने आये मन के सारे भेद भुलाकर।
तेरे भीतर एक नदी है मेरे भीतर एक समंदर।।
पहली बार मिला था जब मैं
तू मुझको कितना भाया था।
गंगा जैसा पावन-पावन
तेरा रूप नज़र आया था।
फिर मिल जाये वो पावनता हम हो जायें 'गंगासागर'।
तेरे भीतर एक नदी है मेरे भीतर एक समंदर।।
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