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मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587
आईएसबीएन :9781613013083

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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


यही तो एक भारी रहस्य की कुंजी है - यथार्थ तो यही है कि कोई भी म्लेच्छ जातिवाले चाहे मिस्रदेशवासी हों या एसीरियन या बेबीलोनियन - आर्यों की, विशेषकर हिन्दुओं की सहायता के बिना, कभी इस सिद्धान्त पर नहीं पहुँचे कि आत्मा का अलग अस्तित्व है और वह शरीर से स्वतन्त्र रहकर भी अलग जी सकती है।

यद्यपि हिरोडोटस का कहना है कि मिस्रदेशवासियों को ही सर्वप्रथम आत्मा की अमरता का ज्ञान हुआ, और वह मिस्रवासियों का यह सिद्धान्त भी बताता है कि ''शरीर के नाश होने पर आत्मा जन्म लेनेवाले प्राणियों में पुन: पुन: प्रवेश करती है और थलचर, जलचर, नभचर प्राणियों में भटकते-भटकते तीन सहस्र वर्षों के पश्चात् पुन: मनुष्य शरीर को लौटकर आती है'', तो भी मिस्रदेशीय प्राचीन इतिहास के आधुनिक शोध करनेवालों ने उस देश के सर्वसाधारण धर्म में आत्मा की देहान्तरप्राप्ति के सिद्धान्त (Metemphycosis) का कोई पता नहीं पाया। इसके विपरीत मैस्पैरो, ए. एरमेन और अन्य विख्यात आधुनिक मिस्र संशोधक तो इसी अनुमान की पुष्टि करते हैं कि मिस्रदेशवासी पुनर्जन्म (Palingenesis) के सिद्धान्त से परिचित नहीं थे।

पुराने इजिप्त (मिस्रदेश) वासी आत्मा को केवल शरीर का प्रतिरूप या जोड़ावाला मानते थे और उनका यह विश्वास था कि वह अपने निजी अलग व्यक्तित्व से रहित है और शरीर से सम्बन्धविच्छेद नहीं कर सकती। जब तक शरीर है तभी तक वह वर्तमान रहती है और यदि संयोगवश मृतशरीर का नाश हो जाय, तो उस शरीर से छूटी हुई आत्मा को दुबारा मृत्यु और विनाश का दुःख भुगतना पड़ता है।

मृत्यु के उपरान्त आत्मा संसार भर में स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण कर सकती थी, परन्तु वह रात के समय सदा दुःखी, सदा भूखी-प्यासी, जिस स्थान में उसका मृतशरीर रहता था, वहीं लौटकर आ जाया करती थी, उसकी सदैव पुनः एक बार जीवन के सुख भोगने की अत्यन्त उत्कट इच्छा रहती थी, पर उस इच्छा को वह कभी पूर्ण नहीं कर सकती थी। यदि उसके पुराने शरीर के किसी भाग में कोई चोट आ जाय तो आत्मा के भी उसी भाग में अवश्य ही चोट आ जाती थी।

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