लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> मरणोत्तर जीवन

मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587
आईएसबीएन :9781613013083

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


चलो, अब हम आत्मा सम्बन्धी उच्चतर विचारों के उद्गम के लिए एक और जाति की ओर चलें, जिनका ईश्वर दयानिधान सर्वव्यापी पुरुष है और अनेक प्रकाशमान दयालु और सहायक देवों के रूप में प्रकट होता है; मानवजाति में सर्वप्रथम जिन्होंने ईश्वर को पिता कहकर पुकारा - ''हे भगवन्! मेरे हाथों को पकड़कर मुझे उसी प्रकार ले चल जैसे पिता अपने प्यारे पुत्र को ले जाता है'', जो लोग जीवन को आशामय मानते थे, उसे निराशापूर्ण नहीं समझते थे, जिनका धर्म, उन्माद और आवेशपूर्ण जीवन में, दुःखी मनुष्य के मुँह से बारी-बारी से निकलनेवाली दुःखभरी आहों का शब्द नहीं होता था, वरन् जिनके विचार खेतों और अरण्यों के सुवास से सुगन्धित होकर हमें प्राप्त होते हैं, जिनके स्तुतिपूर्ण गीत - दिवाकर की प्रथम किरणों से प्रकाशित इस सुन्दर संसार का अभिनन्दन करते समय पक्षियों के गले से निकले हुए मधुर गीतों के समान स्वाभाविक, स्वतन्त्र, आनन्दपूर्ण - अभी भी अनेक शताब्दियों की अवधि के भीतर से स्वर्ग से आनेवाली नयी पुकार की तरह हमें सुनायी दे रहे हैं, - हम उन पुराने आर्यों की ओर दृष्टि डालते हैं।

''मुझे उस मरणरहित, विनाशरहित सृष्टि में पहुँचा दो, जहाँ स्वर्ग का प्रकाश और सनातन तेज चमक रहा है'', ''मुझे उस राज्य में अमर बना दो, जहाँ राजा विवस्वान् का पुत्र निवास करता है, जहाँ स्वर्ग का गुप्त मन्दिर है'', ''मुझे उस राज्य में अमर बना दो, जहाँ श्रवण करते करते वे डोलते हैं, ''अन्तःस्थित स्वर्ग के तृतीय मण्डल में, जहाँ सारी सृष्टि प्रकाशपूर्ण है, मुझे उस आनन्द के साम्राज्य में अमर बना दो'' - ये आर्यों के सब से पुराने ग्रन्थ 'ऋग्वेद-संहिता' के प्रार्थना-मन्त्र हैं।

हमें म्लेच्छों और आर्यों के आदर्श में एकदम जमीन-आसमान का अन्तर दिखायी देता है। एक को तो यह शरीर और यह संसार ही सम्पूर्ण सत्य प्रतीत होता है और उसके लिए यही इष्ट वस्तु हो जाता है। वह थोड़ा-सा जीवन-द्रव जो इन्द्रियों के उपभोग के चले जाने से दुःख और आपत्ति का अनुभव करने के लिए, मृत्यु-काल में शरीर से उड़ जाता है, वही, यदि शरीर की रक्षा सावधानी के साथ की गयी तो, पुन: लौटकर आ जायगा, इस प्रकार की व्यर्थ आशा वे करते रहते हैं; और इसी कारण जीवित मनुष्य की अपेक्षा मुरदा अधिक सावधानी से सुरक्षित रखने की वस्तु बन जाता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book