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मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586
आईएसबीएन :9781613012437

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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के मार्ग

यदि सभी मनुष्य एक ही धर्म, उपासना की एक ही सार्वजनीन पद्धति औऱ नैतिकता के एक ही आदर्श को स्वीकार कर लें, तो संसार के लिए यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात होगी। इससे सभी धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति को प्राणान्तक आघात पहुँचेगा। अत: हमें चाहिए कि अच्छे या बुरे उपायों द्वारा दूसरों को अपने धर्म और सत्य के उच्चतम आदर्श आदर्श पर लाने चेष्टा करने के बदले, हम उनकी सब बाधाएँ हटा देने का प्रयत्न करें, जो उनके निजी धर्म के उच्चतम आदर्श के अनुसार विकास में रोडे अटकाती हैं, और इस तरह उन लोगों की चेष्टाएँ विफल कर दें, जो एक सार्वजनीन धर्म की स्थापना का प्रयत्न करते हैं।

समस्त मानवजाति का, समस्त धर्मों का चरम लक्ष्य एक ही है, और  वह है भगवान् से पुनर्मिलन, अथवा दूसरे शब्दों में उस ईश्वरीय स्वरुप की प्राप्ति जो प्रत्येक मनुष्य का प्रकृत स्वभाव है। परन्तु यद्यपि लक्ष्य एक है, तो भी लोगों के विभिन्न स्वभावों के अनुसार उसकी प्राप्ति के साधन भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। लक्ष्य औऱ उसकी प्राप्ति के साधन - इन दोनों को  मिलाकर ‘योग’ कहा जाता है। ‘योग’ शब्द संस्कृत के उसी धातु से व्युत्पन्न हुआ है, जिससे अँग्रेजी शब्द ‘योक’ (yoke) - जिसका अर्थ है, ‘जोड़ना’। अर्थात् अपने को उस परमात्मा से जोड़ना जो हमारा प्रकृत स्वरूप है। इस प्रकार के योग अथवा मिलन के साधन कई हैं पर उनमें मुख्य हैं कर्म-योग, भक्ति-योग, राज-योग, औऱ ज्ञान-योग।

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