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मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586
आईएसबीएन :9781613012437

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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


स्थूल में होनेवाली हलचल हम अवश्य देख सकते हैं, परन्तु सूक्ष्म में होनेवाली हलचल हम देख नहीं सकते। जब स्थूल वस्तुएँ हलचल करती हैं, तो हमें उसका बोध होता है और इसलिए हम स्वाभाविक ही हलचल का सम्बन्ध स्थूल से जोड़ देते हैं; परन्तु वास्तव में सारी शक्ति सूक्ष्म में ही है। सूक्ष्म में होनेवाली हलचल हम देख नहीं सकते। शायद इसका कारण यह है कि वह हलचल इतनी तीव्र होती है कि हम उसका अनुभव ही नहीं कर सकते। परन्तु यदि कोई शास्त्र या कोई शोध इन सूक्ष्म शक्तियों के ग्रहण करने में सहायता दे, तो यह व्यक्त विश्व ही, जो इन शक्तियों का परिणाम है, हमारे अधीन हो जायगा। पानी का एक बुलबुला झील के तल से निकलता है, वह ऊपर आता है, परन्तु हम उसे देख नहीं सकते जब तक कि वह सतह पर आकर फूट नहीं जाता। इसी तरह विचार अधिक विकसित हो जाने पर या कार्य में परिणत हो जाने पर ही देखे जा सकते हैं। हम सदा यही कहा करते हैं कि हमारे कर्मों पर हमारे विचारों पर हमारा अधिकार नहीं चलता। यह अधिकार हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं? हम विचारों को मूल में ही अगर अधीन कर सकें, तो इन सूक्ष्म हलचलों पर हमारा प्रभुत्व चल सकेगा। विचारों को कार्य में परिणत होने के पहले ही जब हम अधीन कर लेंगे, तभी सब पर हमारा प्रभुत्व चल सकेगा।

अब, अगर ऐसा कोई उपाय हो, जिसके द्वारा हम कारणभावों का अर्थात् इन सूक्ष्म शक्तियों का पृथक्करण कर सकें, उन्हें समझ सकें, औऱ अन्त में अपने अधीन कर सकें, तो हम स्वयं पर अपना अधिकार चला सकेंगे। और जिस मनुष्य का मन उसके अधीन होगा, निश्चय ही वह दूसरों के मनों को भी अपने अधीन कर सकेगा। यही कारण है कि पवित्रता तथा नीतिमत्ता सदा के लिए धर्म के विषय बने हुए हैं। पवित्र, सदाचारी मनुष्य स्वयं पर अपना अधिकार चलाता है। हम सब के मन उस एक ही समष्टिमन के अंश मात्र हैं। जिसे एक ढेले का ज्ञान हो गया, उसने दुनिया की सारी मिट्टी जान ली। जो अपने मन को जानता है और स्व-अधीन रख सकता है, वह दूसरों के मनों का रहस्य भी पहचानता है और उन पर अपना प्रभुत्व चला सकता है।

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