ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
जिंदगी
जिंदगी से मिलने की सिद्दत में जाने कितने जतन किये, मुलाकात जिंदगी से हुई तो खुद को देखना भूल गये, उसकी शुमार करना भूल गये, जीते रहे जिंदगी के हर लम्हे को इस कदर जैसे हर एक पल मुलाकात खुदा से हो, सोचा ना था की यूँ तब्दील हो जाएगी, जिंदगी यूँ राह के काँटों की तरह, भूल गई थी वो मिलते वक्त कितने बादे किए थे हर वक्त साथ चलने की, वक्त के साथ कठिनाई पर जीतने की, ताउम्र सिर झुकते आये हर दहलीज पर लेकिन आज हर बादे की बंदिश को तोड़ कर शमशीर ताउम्र सिर झुकते आये हर खड़ी है, खून के कतरे बहाने को, आख़िर बहाए क्यों ना हक है उसका मुझ पर, मेंरी हर एक राह पर, फिर अकेले आख़िरी उस मुकाम पर पलट कर चली जाएगी अपने शीशों के महलों में जहाँ से मुझे लेकर आई थी,
हमने कितने सिद्दत के साथ
जिंदगी से मुलाकात की थी,
उसकी शुमार ना की थी,
हमें क्या पता था,
यह जान की दुश्मन थी,
बड़ी सिद्दत से जीते गये थे,
मालूम ना था,
यही हमारे जश्न की कहानी थी,
ताउम्र सर झुकते रहे,
पर आज ये धोखा दे गई थी।
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