ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
झील का किनारा, महफिल की खामोशी और दूर तक फैली हुई दुल्हन की भांति पुष्पों से लदी चोटियों का दृश्य स्वर की मधुरता और भी बढ़ा रहा था। अंजना को लगा जैसे वे गीत के बोल न होकर उसके अपने दिल के टुकड़े हैं जो उस समय उसके हृदय के भावों को व्यक्त कर रहे हैं।
महफिल समाप्त हो गई। मेहमानों का जमघट क्षण-प्रतिक्षण कम होता जा रहा था। हर कोई इस अवसर पर कमल को बधाई देकर आगे बढ़ जाता था। अंजना चुपचाप एक कोने में खड़ी उन लोगों को देखती रही जो एक विशेष ढंग से कमल के पास आते और अपने दिल की बात कहकर विदा हो जाते।
आखिर जब क्लब का लान खाली हो गया तो कमल अंजना के पास आया जो अब अकेली बच रही थी और घर जाने के लिए उसकी अनुमति की प्रतीक्षा कर रही थी।
अंजना ने धीमे स्वर में कमल से पूछा-''अब मैं जाऊं?''
''नहीं, संध्या गहरी हुआ ही चाहती है। अकेले जाना ठीक नहीं। मैं छोड़ आता हूं।''
''लेकिन आप...?''
''मुझे भी उसी रास्ते से घर लौटना है और फिर बाबूजी क्या सोचेंगे अगर इस समय तुम्हें नाव में अकेला भेज दिया।''
अंत में अंजना उसकी बात मान गई और किश्तीवाले को छुट्टी दे दी गई। वह पहले कभी इस झील के किनारे वाली सड़क पर नहीं गई थी। हां, इस सड़क को वह अपने कमरे की खिड़की से देखा अवश्य करती थी। आज वह उसे घूमकर देखना चाहती थी। वह कमल का इशारा पाते ही उसकी जीप में जा बैठी।
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