ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''नहीं, कमल बाबू! अब तो मुझे एकान्त से प्यार-सा हो गया है।''
''तभी तुमने मेरे जन्मदिन के उत्सव में आने से इंकार कर दिया था।''
''यह बात नहीं, मैं जन्मदिन की खुशी में शामिल तो होना चाहती थी, लेकिन उन लोगों से डरती थी जिन्हें मैंने कभी देखा नहीं। न जाने वे क्या समझे!''
''क्या समझें?'' उसने निःसंकोच पूछा।
अंजना उसके मनोभाव को ताड़कर कांप उठी। उससे कोई जवाब न बन पड़ा। वह विह्वल और लज्जित दृष्टि से उसे निहारने लगी। उसके दिल की बात बार-बार उछलकर होंठों तक आ रही थी, लेकिन उसे कहने का साहस नहीं हो रहा था।
कमल उसकी मानसिक दशा देखकर स्वयं बोल पड़ा-''यही ना, कि डिप्टी साहब की बहू का कमल से क्या नाता है, क्या रिश्ता है, जो वह अपनी सोक भरी दुनिया को छोड़कर उसकी महफिल की रौनक बढ़ाने चली आई?''
अंजना चकित होकर उसकी ओर देखने लगी जो जीवन के यथार्थ को लापरवाही से तौल रहा था।
कमल ने प्लेट उसकी ओर बढ़ाई और बोला-''जब अपना मन गंगाजल की तरह पवित्र हो तो दुनिया वालों की परवाह नहीं किया करते। एक रिश्ता टूट जाने से संसार के सारे रिश्ते तोड़ डालना अच्छा नहीं होता।
|