लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

38 पाठक हैं

एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''मामा के घराने की ना! तुम्हारे प्यार की तो नहीं होती!''

''तो अब क्या फैसला है तुम्हारा?''

''चुपचाप घर लौट जाओ। कहीं ऐसा न हो, तुम्हारी यह हरकत देखकर मामा तुम्हें तुम्हारी जायदाद से वंचित कर दे। तुम्हारे वे अधिकार छीन लें जो हमारे नये जीवन की बुनियाद बन सकते हैं?"

''हूं! अब समझी! तुम्हें मेरी मुहब्बत से ज्यादा मेरी दौलत का ख्याल है।'' अंजना की विचारधारा बदल गई। वह प्यार के घेरे से निकलकर जीवन के यथार्थ को समझने का प्रयास करने लगी।

''नहीं अंजू! मुझे गलत मत समझो। मैं ज्यादा पीने से सचमुच बहक गया हूं। मेरा मतलब तुम्हारी दौलत से नहीं था, बल्कि तुम्हारे अधिकारों से था। अपने अधिकारों के लिए लड़ना हम सबका कर्तव्य है। कहीं ऐसा तो नहीं अंजू कि तुम्हारा मामा तुम्हारा ब्याह करके तुम्हारी जायदाद हजम करने की फिक्र में हो?"

वह बोलता जा रहा था, लेकिन अंजना की परेशान निगाहें दूसरी ओर लगी हुई थीं। वह पर्दे के पीछे छिपी लड़की के सफेद पैरों को निहार रही थी जो पर्दे में छिप न सके थे।

वह धीरे-धीरे पर्दे की ओर बढ़ने लगी।

बनवारी अंजना का इरादा भांप गया। उसने उसकी निगाहों से आग बरसती देख ली जो पल-भर में सब कुछ जलाकर राख कर देने वाली थी।

अभी वह कुछ कहने ही जा रहा था कि अंजना ने लपककर उस पर्दे को खींच लिया। अधनंगी शबनम को वहां खड़ी देखकर उसके हृदय को एक धक्का-सा लगा और क्षण-भर के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसके शरीर में एक भूचाल आ गया हो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book