लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

38 पाठक हैं

एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''मैंने तो उन्हें कभी नहीं देखा।''

''आप देख भी कैसे सकती थीं! शादी से पहले ही उन्होंने बेटे को घर से निकाल दिया। तीन बरस तक उन्होंने उसकी सूरत नहीं देखी।''

''मेरी वजह से।''

''मैं जानता हूं। तब मैं जर्मनी में पढ़ रहा था वरना कभी ऐसा नहीं होने देता।''

''क्या मेरा ब्याह?''

''नहीं, बल्कि शेखर का वनवास। मैं उन्हें समझा-बुझाकर तुम लोगों का मिलाप करा देता। वे मिज़ाज के बड़े सख्त हैं, लेकिन दिल के धनी हैं। लेकिन अब...? अब क्या से क्या हो गया? उनका बेटा हम सबको अंधेरे में छोड़कर चला गया। जवान बेटे की मौत ने उनके सोचने का ढंग बदल दिया है। वह संगदिल आदमी आज मोम चुका है। मां तो मानो दीवानी गई है।''

''मुझे तो उनके बारे में सोचकर भी डर लगता है। वे लोग सोचते होंगे, मैं ही उनके बेटे को निगल गई, डाइन बनकर खा गई।''

''नहीं, अब तो वे अपने-आपको कोस रहे हैं। सोच रहे हैं कि लक्ष्मी जैसी बहू को ठुकराने का यह नतीजा मिला है उन्हें। भगवान ने यह सज़ा दी है उन्हें।''

अंजना ने निगाहें उठाकर कमल के चेहरे की ओर देखा। वह यह सब बड़ी गंभीर मुद्रा में और बड़े विश्वास से कह रहा था जैसे वह उसी घराने का सदस्य हो और उनके दुख-दर्द और उलझन को समझता हो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book