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ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''मैंने तो उन्हें कभी नहीं देखा।''
''आप देख भी कैसे सकती थीं! शादी से पहले ही उन्होंने बेटे को घर से निकाल दिया। तीन बरस तक उन्होंने उसकी सूरत नहीं देखी।''
''मेरी वजह से।''
''मैं जानता हूं। तब मैं जर्मनी में पढ़ रहा था वरना कभी ऐसा नहीं होने देता।''
''क्या मेरा ब्याह?''
''नहीं, बल्कि शेखर का वनवास। मैं उन्हें समझा-बुझाकर तुम लोगों का मिलाप करा देता। वे मिज़ाज के बड़े सख्त हैं, लेकिन दिल के धनी हैं। लेकिन अब...? अब क्या से क्या हो गया? उनका बेटा हम सबको अंधेरे में छोड़कर चला गया। जवान बेटे की मौत ने उनके सोचने का ढंग बदल दिया है। वह संगदिल आदमी आज मोम चुका है। मां तो मानो दीवानी गई है।''
''मुझे तो उनके बारे में सोचकर भी डर लगता है। वे लोग सोचते होंगे, मैं ही उनके बेटे को निगल गई, डाइन बनकर खा गई।''
''नहीं, अब तो वे अपने-आपको कोस रहे हैं। सोच रहे हैं कि लक्ष्मी जैसी बहू को ठुकराने का यह नतीजा मिला है उन्हें। भगवान ने यह सज़ा दी है उन्हें।''
अंजना ने निगाहें उठाकर कमल के चेहरे की ओर देखा। वह यह सब बड़ी गंभीर मुद्रा में और बड़े विश्वास से कह रहा था जैसे वह उसी घराने का सदस्य हो और उनके दुख-दर्द और उलझन को समझता हो।
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