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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


शबनम भी अपने स्थान पर उछल पड़ी। दरवाज़े के बाहर अंजना खड़ी थी--मान.. गंभीर।

''अंजू-तुम।'' बनवारी के मुंह से निकला।

अंजना चुपचाप भीतर चली आई। बनवारी ने बाहर फैले हुए अंधकार में नजरें दौड़ाईं लेकिन किसी को करीब न देखकर झट से दरवाजा बन्द कर लिया। अब अंजना चुपचाप खड़ी शबनम की ओर देख रही थी।

शबनम ने अपने अर्धनग्न शरीर को ढापने का असफल प्रयास किया और टुकुर-टुकुर अंजना की ओर देखने लगी।

''घबराओ नहीं शबनम! मैं तुमसे कुछ छीनने नही, बल्कि तुम्हारा हक तुम्हें लौटाने आई हूं।

''लेकिन-तुम तो पुलिस की हिरासत में थीं!'' बनवारी ने बीच में पड़ते हुए कहा। ़

''हां--लेकिन अब उन्होने छोड़ दिया है मुझे।''

''वह कैसे?"

''असली हत्यारे को पकड़कर।"

''कौन है वह?'' बनवारी के थरथराते होंठ सूख गए और चेहरे का रंग पीला पड़ गया। अंजना क्षण-शर के लिए मौन रही और फिर उसकी घबराहट का अनुमान लगाती हुई बोली-"रमिया।''

''रमिया!'' बनवारी ने दोहराया और रुमाल से माथे पर आया हुआ पसीना पोंछने लगा।

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