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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


19


''वाह! क्या सोचा है! लगता है, तुम सठिया गए हो!''

''मैं नहीं, तुम सठिया गए हो केदारनाथ! मैं तो तुम्हारे बेटे की जिंदगी बनाने की सोच रहा हूं।''

''जवाब नहीं तुम्हारा! एक विधवा और वह भी तुम्हारे पोते की मां! उसे मेरे बेटे के गले मढ़कर एहसान जता रहे हो!''

''वह एक देवी है, घर की लक्ष्मी है।''

''तो उसे अपने घर में ही सजाकर दिन-रात उसकी पूजा किया करो। मुझे नहीं चाहिए ऐसी देवी, ऐसी लक्ष्मी!''

''तुम हो मोटी अकल के आदमी!''

''मोटी अकल का हूं, जभी तो स्वस्थ हूं! तुम्हारी तरह जिंदगी की बारीकियों के बारे में सोचने लगूं तो दो दिन में ही चारपाई पकड़ लूं।''

केदारनाथ ने अपने माथे से पसीना पोंछा और क्रोध से नथने फुलाकर इधर-उधर देखने लगे। जगन्नाथ को अपने मित्र के मन-मस्तिष्क में फैली उत्तेजना का आभास हो गया, अत: पास पड़ी मेज से दवा की शीशी में से दो गोलियां निकालकर उसे देते हुए बोले-''लो ये गोलियां, मुंह में रख लो। तुम्हारा क्रोध और मन की सारी उत्तेजना शान्त होँ जाएगी।''

''मजाक न करो जगन्नाथ!''

''अच्छा, नहीं करूंगा। अब कहो।''

''कहने को तुमने छोड़ा ही क्या है! सोचा था तुमसे कुछ मन की पीड़ा कहूंगा तो कुछ तसल्ली मिलेगी, संतोष होगा।''

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