ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''फिलहाल टाल दिया। सोचा जल्दबाजी अच्छी नहीं है।''
वह चुप हो गई और ऐश-ट्रे लेकर खिड़की तक चली गई। राख और सिगरेट के टुकड़े बाहर फेंक दिए। उसे साफ करके फिर से मेज पर रख दिया।
अंजना के गंभीर मुंह की ओर देखते हुए उन्होंने पुन: कहा-''मुझे यह आदमी पसन्द नहीं आया। कोई चार सौ बीस लगता है।''
''आपने ठीक समझा है। मैं आपसे उस दिन भी कहना चाहती थी। बनवारी अच्छा आदमी नहीं है।''
''मुझे तो डर है कि कहीं वह पांच हज़ार की रकम हजम न कर जाए।''
वह चुप रही। कोई जवाब ही नहीं बना उससे।
''क्या नाता है तुम्हारा-उसका?''
''कुछ भी नहीं। वह जबरदस्ती हमारा रिश्तेदार बनना चाहता है।''
''उससे तुम्हारी जान-पहचान कहां हुई?''
बाबूजी के इस प्रश्न से उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। उसकी रगों में दौड़ता हुआ खून जैसे एकदम पानी बनकर बदन से फूट पड़ा और वह बहकी-बहकी निगाहों से ससुर का सामना करते हुए बोली-''बरसों पहले उसने मुझसे विवाह करना चाहा था।''
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