ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
दोपहर के खाने के बाद अंजना शालिनी और कमल के साथ बाज़ार के लिए चल पड़ी। आज उसने साड़ी भी शालिनी की पसंद की ही पहनी थी। साड़ी सादी थी लेकिन बड़ी नफीस!
लाला जगन्नाथ को भी बहू के इस लिबास में आनेवाले कल की कल्पना छिपी हुई दिखाई दी। आज वह और दिनों से अधिक खुश भी नजर आ रही थी। उसके दिल की धड़कनें उसके अपने बस में नहीं थीं। आज तो उसकी चाल में भी अजीब लचक और लोच आ गई थी। उसका रंग-ढंग बदला हुआ था।
दिन-भर वह उनके साथ बाज़ारों में घूमती रही। शालिनीजी भरकर शापिंग करती रही और उसके भइया बिल पर बिल चुकाते रहे। अंजना मौन बनी बहन-भाई के सवाल-जवाब सुनती रही।
कमल हर कदम पर किसी न किसी बहाने अंजना की प्रशंसा कर देता और शालिनी जब उसके इशारे को समझ जाती तो वह झेंप जाता। यह देखकर अंजना मन ही मन मुस्कराने लगती। उसे अपनी आराधना पूरी होती दिखाई दे रही थी।
एक दुकान पर जब वह शालिनी के लिए साड़ी पसंद कर रही थी तो शालिनी ने अंजना की पसंद की एक साड़ी पर हाथ रखते हुए कहा-''मेरी बात मानो पूनम! यह साड़ी तुम ले लो। तुम्हारे रंग और बदन पर खूब खिलेगी।''
''नहीं शालो, यह अवसर नहीं।''
''अवसर होता नहीं, बना लिया जाता है। यह दस्तूर है जमाने का।'' कमल ने झट से टोक दिया और गहरी निगाहों से उसकी ओर देखा।
''नहीं, आप तो सब जानते हैं।''
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