ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''जी नहीं! जी हां! भला इसमें बुरा क्या है!'' वह अचकचाकर बोला; और फिर डिप्टी साहब की बातों का मतलब आंकने लगा।
फिर सहसा वह बोला-''लेकिन वह मानेगी?''
''उससे पहले तो मुझे सोचना है कि क्या कोई उससे ब्याह करने पर राजी हो जाएगा!''
इससे पहले कि कमल कुछ उत्तर दे और बातें कुछ और आगे बढ़ें, शालिनी अंजना के कमरे से लौट आई। वह उछलती-कूदती डिप्टी साहब के पास आई और उनकी बहू को अपने साथ ले जाने की अनुमति मांगने लगी। शालिनी दूसरे दिन ही नैनीताल से जाने वाली थी। उसकी सहेलियां चार दिन पहले ही जा चुकी थीं। अब वह अकेली थी। आज का दिन वह अंजना के साथ बिताना चाहती थी। उसने कुछ शापिंग का प्रोग्राम बनाया हुआ था।
''मुझे कब इंकार है बेटी?'' वे यह सब विवरण सुनकर बोले।
''आपको तो नहीं, लेकिन उसे तो है।''
''वह क्यों?''
''आप घर पर अकेले हैं ना, इसलिए।''
''लो! जैसे मैं कोई बच्चा हूं!''
तभी अंजना हाल की सीढ़ियों पर आ ठहरी। कमल और लालाजी ने एक साथ निगाहें उठाकर उसकी ओर देखा।
शालिनी ने जब अपनी बात दुहराई तो उसने फिर इंकार कर दिया। बोली-''घर का सारा काम पड़ा है।''
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