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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
औरत अपने जीवन में इतना बड़ा नाटक खेल सकती है, उन्हें अभी तक इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन उन्होंने जबान से कुछ और ही कहा। बोले-''तुम मन्दिर तो जाती हो बहू! दो-चार घड़ी दिल का बोझ हल्का हो जाता है। मैं तो यह भी नहीं कर सकता।''
''वाह चाचाजी! आपको मन्दिर जाने की क्या जरूरत है?'' शालिनी ने तुरत उनकी बात काट दी।
''वह क्यों?''
''जिस घर में पूनम जैसी देवी विराजमान हो, उस घर के लोगों को मन्दिर जाने की क्या जरूरत है? वह घर भी तो मन्दिर से कम नहीं!''
बाबूजी मौन रहे। अंजना ने झेंपकर शालिनी के चुटकी काटी जैसे अनजाने में वह कोई गलत बात कह गई हो और फिर इस बहस से बचने के लिए वह अपने कमरे की ओर बढ़ी। शालो को भी अपने साथ चलने का इशारा किया।
कमल जो अभी तक मौन साधे हुए था, बोला-''वाह! इस घर की देवी क्या बनीं कि हमें प्रसाद देना भी भूल गईं!''
''ओह!'' वह जाते-जाते रुक गई और कमल की ओर पलटी।
लालाजी ने चोर-निगाहों से दोनों की मुखमुद्राएं पढ़ने का यत्न किया और अंजना के कंपन को भी भांप लिया।
ज्योंही वह प्रसाद देकर पीछे हटी, लाला जगन्नाथ ने बीमा कम्पनी का वह फार्म सामने रख दिया जो कमल अपने साथ लेकर आया था।
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