ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
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गाड़ी तेजी से भागी जा रही थी। फर्स्ट क्लास के एक सुनसान डिब्बे में अंजना और पूनम आमने-सामने की सीटों पर बैठी थीं।
राजीव सीट के कोने में लेटा हुआ था। पूनम किसी पत्रिका के अध्ययन में लीन थी और अंजना मौन धारण किए खिड़की से बाहर छाए अंधकार में घूर रही थी, जिसमें नजर आते धुंधले साये गाड़ी की विपरीत दिशा में भागे चले जा रहे थे। गाड़ी की गड़गड़ाहट चारों ओर छाए सन्नाटे को भंग कर रही थी।
अंजना ने अपनी सहेली का साथ देना मान लिया था और अब उसकी छोटी बहन बनकर उसकी ससुराल जा रही थी- एक नई जिन्दगी शुरू करने, एक नई दुनिया बसाने। उसके जीवन में ऐसा परिवर्तन आएगा, यह बात उसने स्वप्न में भी नहीं सोची थी।
सहसा पूनम की आवाज ने उसे चौंका दिया। वह पूछ रही थी-''क्या सोच रही हो अंजू?''
''यही कि आज जीवन किस डगर पर चल पड़ा है!''
''तो इस डगर पर चलने से डरती क्यों हो, जबकि मैं तुम्हारे साथ हूं?''
''हां पूनम! सन्तोष तो इसीलिए मिल गया है। अगर आज तुम न मिलतीं मुझे तो न जाने मेरी मंजिल कहां होती और क्या होती!''
''भाग्य में यही बदा था।''
''भाग्य की भी तुमने खूब कही! जानती हो, मामा ने मुझसे क्या कहा था?''
''क्या?''
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