ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''तुम ठीक कहती हो, लेकिन अब इस बुढ़ापे में अपना ख्याल भी तो खुद हमें ही रखना है।''
अंजना ने ध्यान से देखा। उनकी पलकों में आंसू बिखरते-बिखरते रह गए थे। वह उनके पास चली आई और तौलिये से उनका मुंह साफ कर दिया जो नाश्ते के बाद ठीक से साफ नहीं हो सका था।
''बाबूजी!'' उसने बड़े आदर-भाव से उनकी ओर देखा।
लाला जगन्नाथ ने भी पलकें उठाकर उसकी ओर देखा। उनका चेहरा अत्यधिक गंभीर था।
''एक बात कहूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगे?''
उसके सवाल को सुनकर लालाजी की मानो सांस रुक गई। ऐसा लगा जैसे वह अपने जीवन का वह रहस्य उनसे खोलने वाली हो। उन्होंने डरते-डरते सिर हिलाया।
अंजना धीरे से बोली-''मैंने एक लाख के बीमे पर साइन कर दिए हैं।''
''वह तो मैं जानता हूं।''
''लेकिन उस रुपये के अधिकारी आप हैं, केवल आप।''
लालाजी ने गहरी नजरों से बहू की झील जैसी आंखों में झांका। उन्हें इस भावुकता के पीछे आज छल की झलक दिखाई दी। उन्हें बहू की हर बात, हर हरकत में बनावट का आभास हो रहा था। उसकी पलकों में आए हुए आंसू भी आज अंगारे मालूम हो रहे थे।
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