ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''जी।''
''यह तो जंगल है पूनम! यहां दूर-दूर तक किसी जानने वाले का पता नहीं। कौन उंगली उठाएगा इस फूल को देखकर? जी चाहता है तो लगा लो।''
''आपने गलत समझा। मुझे फूलों से कोई खास लगाव नहीं है।''
''झूठ! लगाव न होता तो तुम उसे बेचारे को उसकी टहनी से अलग करके अपने जूड़े में सजाते-सजाते पत्थरों पर न पटक देतीं।''
''शायद आपको उस पर तरस आ रहा है?''
''क्यों न आए? तुम्हारे हृदय को असमंजस में पड़ा देख वह मुरझा जो रहा है।''
''इतना तरस आ रहा है तो अपने कोट के बटन में लगा लीजिए ना!''
अंजना घूमकर उसके सामने हो गई और कमल उसकी गहरी झील जैसी आंखों में निहारने लगा। वह बुत बना एकटक उसमें छलकती हुई जवानी की आभा को देखता रहा और राम जाने क्या सोचकर उस फूल को अपने कोट में लगा लिया।
''लो, तुमने हुक्म दिया और मैंने मान लिया, बस!''
अंजना ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और खिसककर उस झरने के पास आ गई। चांदी की धार गिरने से संगीत की एक धुन जैसी बजती मालूम हो रही थी। वह एकचित्त होकर उसी सरोवर के संगीत में खो गई।
'क्या सोच रही हो?'' कमल से मौन रहा नहीं गया।
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