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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
14
नैनीताल की सुन्दर वादी, हरियाली और जंगलों की गहनता शालो और उसकी सहेलियों को बहुत भाई। उनकी टोली में अंजना और कमल भी थे। अंजना कुछ देर के लिए अपनी घुटन भूल गई थी और वह उन लड़कियों में घुलमिल गई थी। उसकी चंचलता फिर लौट आई थी। वह पहाड़ियों की तलहटियों में अठखेलियां करती, कूदती-फांदती। ऐसा लगता जैसे कोई तितली पर फैलाए कभी यहां कभी वहां उड़ती फिर रही है। इस इठलाती और छलकती जवानी की आंख जब कभी कमल से मिलती तो वह झिझक जाती। उसकी आंखों में लज्जा का आवरण लहरा जाता। उसके अंग-अंग से टपकती हुई शोखी और चुलबुलाहट फीकी पड़ जाती। वह गुम-सुम-सी होकर दूसरी ओर देखने लगती।
उसकी इन भंगिमाओं से कमल के हृदय में एक तहलका-सा मच जाता। मन कुछ अजीब तरह से मथने लगता, लेकिन चेहरे की गंभीरता उसे प्रत्यक्ष न होने देती। वह डरता भी था कि कहीं उसकी जबान से कोई ऐसी बात न निकल जाए जिससे हंसती-खेलती सौंदर्य की यह प्रतिमा पाषाण-मूर्ति बनकर रह जाए। अत: वह उससे नजरें चुराकर दूसरी ओर निकल जाता या उन लड़कियों से बातें करने लगता।
वे घूमते-फिरते पिकनिक के मूड में बहुत दूर निकल आए थे। हिमालय की फैली हुई घाटियों का नज़ारा देखते-देखते वे उस झील के पास आ पहुंचे जो दो पहाड़ियों के बीच घिरी हुई थी। ऊपर पहाड़ों से एक झरना गिर रहा था जो सीधा उस झील में आकर समा जाता था। पान की वह फुहार सुनहरी धूप में यों चमक रही थी जैसे चांदी के झिलमिलाते हुए कण नीली गहराइयों में डूब रहे हों।
लड़कियां थक चुकी थीं। वे सुस्ताने के लिए झील के किनारे एक चट्टान पर बैठ गईं। कुमुद को चाय की तलब लगी और फिर सब मिलकर नाश्ते की तैयारी में जुट गईं।
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