ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
बनवारी उसका पीछा करते-करते रुक गया। उसके कदम रास्ते के उस पत्थर से ठोकर खाकर रुक गए जिसके पास मोतियों का एक हार गिरा पड़ा था। बनवारी उस मूल्यवान हार को देखकर अपनी बेइज्जती और अंजना की बेरुखी को भूल गया। उसकी सुर्ख आंखों में एक धुंधली-सी चमक उभरी। हार उठाकर उसे एक जौहरी की तरह अपनी उंगलियों और निगाहों से टटोलने लगा और फिर बड़ा-बड़ा उठा-''कोई बात नहीं अंजू! तुम्हारा यह हार तुम्हारी बेरुखी का बदला चुका देगा।''
हांफती हुई अंजना जब बड़े हाल में पहुंची तो अपने ससुर को देखकर ठिठक गई।
लाला जगन्नाथ ने अपनी बहू की परेशान और भयभीत सूरत देखकर तुरत पूछा-''क्यों, क्या हुआ बहू?''
''कुछ नहीं, यों ही बाबूजी!''
''कहो ना क्या बात है? इतनी घबराई हुई क्यों हो?''
''मैं...मैंने पिछवाड़े, वह जंगली रास्ता है ना! वह जो-जो झील की ओर जाता है, वहां एक जानवर देखा-''वह उखड़े सांसों को ठीक करती हुई बोली।
''लेकिन तुम्हें वहां जाने के लिए किसने कहा था? वह रास्ता तो वीरान है। कभी-कभी वहां भेड़िया आ जाता है।''
''जी बाबूजी, वह भेड़िया ही था।'' अंजना ने घबराई हुई आवाज में कहा और सीढ़ियों की ओर बढ़ी। अचानक उसकी नजर रमिया पर पड़ी जो पहले ही सीढ़ियों पर खड़ी थी।
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