ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''अपनी खोई हुई मुहब्बत को फिर से दिल में बसाना चाहता हूं।''
''मुहब्बत।'' वह झुंझला उठी।
''हां, वह मुहब्बत जिसे डिप्टी साहब की दौलत ने अपने आंचल में छिपा रखा है।''
''तुम फौरन यहां से चले जाओ वरना-वरना मैं चिल्लाकर...''
''नहीं अंजू! अब तुम ऐसा नहीं कर सकोगी।'' बड़े दृढ़ स्वर में बनवारी ने कहा और उसके पास आ बैठा।
अंजना घबराकर उठने लगी तो उसने उसका आंचल पकड़ लिया। वह वहीं की वहीं गठरी बनकर बैठ गई और अपने-आपको समेटकर उसकी पिशाच सदृश सूरत देखने लगी। भय से वह अधीर हो उठी। उसके होंठ फड़कने लगे।
''उस दिन मिलीं तो भाग आईं, घर आया तो बेइज्जती करके निकाल दिया और आज यहां दीदार हुआ तो घृणा से मुंह मोड़, लिया।''
''और क्या करूं? तुम्हारा और मेरा रिश्ता ही क्या है?''
''तुम्हारा-मेरा संबंध उन रिश्तों से कहीं गहरा है जो तुमने आजकल डिप्टी साहब के यहां बना रखे हैं।''
अंजना व्याकुल हो उसे निहारने लगी। बनवारी अपनी विषैली मुस्कराहट के साथ कहता रहा-''कह दो, मैं झूठ कह रहा हूं। यह बहू! यह बच्चे की मां और फिर यह रणापा! इन रिश्तों से तो कहीं गहरा है अपने प्यार का रिश्ता!''
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