ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''कहीं ऐसा तो नहीं बनवारी कि अपनी ज़िंदगी को स्थिर बनाते-बनाते मेरी मुहब्बत को ही ठिकाने लगा दो?'' शबनम ने अपनी शंका व्यक्त की।
''तुम भी बड़ी भोली हो। अगर मुझे तुमसे किनारा ही करना होता तो क्या मैं घर आई सुनहरी चिड़िया यों फुर्र से उड़ जाने देता? मेरा और उसका क्या साथ? शराब से उसे नफरत, नाच-गाने से उसे लगाव नहीं। मैं उस पालतू गाय का क्या करूंगा! मुझे तो बिजली चाहिए जो शबनम में है।'' शबनम उसकी बात सनकर लजाने लगी। बनवारी ने प्यार से उसे अपने पास खिसका लिया और उसके बदन की गर्मी से अपने बदन को गरमाने लगा। फिर उसने हाथ में पकड़ा हुआ जाम शबनम के होंठों से लगा दिया। वह इंकार करती हुई मचली लेकिन बनवारी ने जबरदस्ती कई घूंट पिला ही दिए।
''यहां रहकर क्या करना है तुम्हें?'' शबनम ने फिर पूछा।
''अंजू की कमजोरी से अपनी तकदीर का फैसला करना है।''
''डरती हूं बनवारी! पैसा बटोरते-बटोरते कहीं अंजू के जाल में न आ जाओ।''
''फिर वही बात! विश्वास नहीं रहा मुझपर?''
''तुम पर तो है, लेकिन तुम्हरी नीयत पर नहीं है।''
''लेकिन उन कागज़ात पर तो है जिनके आधार पर हम मियां-बीवी के रिश्ते में बंधे हुए हैं!''
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