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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''और तुम?''
''मैं अभी वहीं से आ रही हूं।''
''आप चाय नहीं पीएंगी क्या?''
''नहीं, मेरा व्रत है। उनका श्राद्ध जो है।''
अंजना की अन्तिम बात ने कमल के सीने में जैसे बर्छी घोंप दी। वह अपनी भावुकता दबाते हुए बोला-''मैं तुमसे बहुत लज्जित हूं पूनम!''
''वह क्यों?''
''उस दिन मैंने गुस्ताखी कर दी थी। मैंने एक पतिव्रता स्त्री की आराधना को परखने की कोशिश की थी।''
''सच कहना कोई पाप नहीं है। मानव-जीवन में दो ही चीजें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं-दिल और दिमाग। दिमाग जो सोचता है, दिल नहीं मानता और दिल जो मानता है उसे दिमाग सोचने की अनुमति नहीं देता।''
''तो मैं यह समझूं कि तुमने उस दिन वाली बात का बुरा नहीं माना?''
''नहीं, अब आप आराम से चाय पीजिए।''
कमल ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा और एक ही घूंट में बाकी चाय पी गया। अंजना जो असमंजस में खड़ी अपनी उत्तेजना को समेट रही थी, झिझकते हुए पूछ बैठी-''आप कहीं बाहर गए हुए थे क्या?''
''नहीं, तीन-चार दिन बुखार ने धर दबाया था इसलिए घर से निकला नहीं।''
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